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गीता यात्रा

प्यार ह्रदय एवं प्रभु गीता कहता है :------ आत्मा रूप में भगवान सब के ह्रदय में हैं और ....... सब को अपनी माया से यंत्र की भाँती भगा रहे हैं ॥ अब ज़रा सोचिये ----- प्रभु ह्रदय में बसता है ..... प्यार की धड़कन भी ह्रदय से उठती है ..... प्यार की धड़कन से ....... प्रभु का संकेत मिलता है ...... लेकीन ----- यही धडकनें जब इन्द्रियों में पहुँचती हैं तब ..... बासना बन कर ........ अमृत को ..... बिष में बदलती हैं ॥ यारों ! प्यार में डूबे हो डूबे ही रहना .... अपनें प्यार को उस हवा से बचाना जो .... अमृत को बिष में रूपांतरित करती है .... क्या यही माया तो नहीं ? माया गुणों का एक झीना पर्दा है .... जो एक तरफ प्रभु को .... और एक तरफ ..... संसार को रखता है ॥ प्यारो ! परदे को प्यार से उठाना .... आगे जो दिखेगा ..... क्या वही परमात्मा तो नहीं ? डूबे हो अपने प्यार में .... तो डूबे ही रहना ॥ ===== ॐ =====