गीता सन्देश
गीता श्लोक - 5.14 यहाँ प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं ----- कर्म , कर्म-फल की चाह एवं कर्म करनें की इच्छा प्रभु से निर्मित नहीं होती , यह सब स्वभाव से होते हैं । गीता का छोटा सा सूत्र जो कह रहा है उसको सुननें वाले कितनें लोग हैं ? और जो सुन लिया वह प्रभुमय हो गया । इस सूत्र के सम्बन्ध में हमें कुछ और बातों को देखना है जो इस प्रकार हैं ------- * स्वभाव की रचना गुण समीकरण से होती है - गीता सूत्र ...3.5,3.27,3.33,18.59 * गुण समीकरण [ गीता सूत्र - 14.10 ] परिवर्तनीय है जो हर पल बदल रहा है । * कर्म करता गुण समीकरण है और यही कर्म करनें की ऊर्जा पैदा करता है । * तीन गुण प्रभु से हैं लेकीन प्रभु गुनातीत है - गीता सूत्र - 7.12 गीता के कुछ परम सूत्र आप के सामनें हैं चाहे आप इनको अपनें बुद्धि में रख कर संदेह में समय गुजारें , प्रश्न के बाद प्रश्न अपनें मन - बुद्धी में उठाते रहें या फिर अपनें में श्रद्धा की लहर उठा कर मन - बुद्धि से परे [ गीता - 12.3 - 12.4 ] पहुँच कर परम आनंद में प्रभु मय की अनुभूति में पहुंचें , सब कुछ आप के हाँथ मेंही है । ==== ॐ =====