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गीता में दो पल -7

प्रभु से प्रभु में माया है जो प्रभु की ही एक उर्जा का माध्यम है और जिससे एवं जिसमें वे सभीं मूल तत्त्व है जिनसे दृश्य वर्ग का होना , रहना और समाप्त होना का चक्र चलता रहता है। 1-  संसार में जो परिवर्तन होता दिखता है , वह समय के होनें की सूचना है । 2- समय को प्रभु का एक ऐसा माध्यम है जिसके होनें की कल्पना प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों से किया जाता है । 3- माया से काल (समय ) के प्रभाव में प्रभु की मूल प्रकृति है जिसे महतत्त्व कहते हैं । 4- दशांगुल - न्याय में कहा गया है कि :---- 4.1 : ब्रह्माण्ड के सात आवरण हैं ; पृथ्वी ,जल , अग्नि , वायु , आकाश , अहंकार और महतत्त्व जिसे मूल प्रकृति कहते हैं । 4.1.1 : पृथ्वी से दसगुना पानी है । 4.1.2 : पानी से 10 गुना अग्नि है । 4.1.3 : अग्नि से 10 गुना वायु है । 4.1.4 : वायुसे 10 गुना आकाश है । 4.1.5 : आकाश से 10 गुना अहंकार है । 4.1.6 : अहंकारसे 10 गुना महतत्त्व है । <> महतत्त्व  सर्व आत्मा प्रभु का चित्त है  (भागवत: 2.1.35 ) । ## अगले अंक में गीता -तत्त्व विज्ञान के कुछ और तत्त्वों को स्पष्ट किया जाएगा ।। ~~ ॐ ~~