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गीता यात्रा

कर्म , भक्ति एवं भगवान् सन्दर्भ गीता सूत्र 18.55 , 18.50 , 18.49 , 4.18 , 18.56 18.54 , 8.6 , 8.7 , 3.34 , 2.62 , 2.63 , 3.19 , 3.20 गीता के तेरह सूत्र आइये देखते हैं इन सूत्रों से हमें कैसे ..... कर्म से भक्ति ..... एवं भक्ति में ..... भगवान् कैसे दिखता है ? ** परा भक्ति प्रभु का द्वार है गीता - 18.55 ** पराभक्ति क्या है ? ** गीता - 18.50 नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान योग की परानिष्ठा है नैष्कर्म की सिद्धि क्या है ? ** आसक्ति रहित कर्म ही नैष्कर्म - सिद्धि है गीता - 18.49 जहां कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म दिखता है गीता - 4.18 ऐसा ब्यक्ति कर्मों से लिप्त नहीं होता और अपनें कर्म में प्रभु को देखता है गीता - 18.56 और ऐसा ब्यक्ति सोच - कामना रहित प्रसन्न चित रहता हुआ परा भक्ति में होता है गीता - 18.54 जो तन , मन , बुद्धि एवं कर्मों से प्रभु में रहता है गीता - 8.6 - 8.7 नैष्कर्म के माध्यम से परा भक्ति में कैसे पहंचते हैं ? बिषय , इन्द्रियों एवं मन समीकरण का ज्ञाता नैष्कर्म सिद्धि में पहुंचता है गीता - 3.34 , 2.62 , 2.63 और जो राजा जनक की तरह बिदेह की स्थिति में रहता हुआ कर्मों मेंलिप्त न