तंत्र और योग - 4

राधे-कृष्ण
सीता - राम
शिव- पार्वती

आप और हम सभी लोग इन नामों से परिचित भी हैं ।
हम लोग इन मंदिरों में जाते भी हैं ।
क्या हम लोगों के बुद्धि में कभी यह सवाल आया की क्यों -----
राम एवं कृष्ण के पहले सीता एवं राधा का नाम लिया जाता है ? और क्यों शिव के बाद पार्वती का नाम आता है ?
हमारा काम है आप में सोच की एक नयी लहर को पैदा करना , न की ऐसे प्रश्नों पर तर्क करना। आप मुझसे अधिक समझदार हैं और आप की सोच आप को तृप्त करेगी और जो मैं कहूंगा उस से आप के बुद्धि में प्रश्न उठ सकते हैं अतः ऊपर की बातों पर आप स्वयं सोचें तो अच्छा रहेगा ।

मनुष्य एक मात्र ऐसा जीव है जो भोग-भगवान् में भ्रमण करता है , कभी वह घर बनवाता है तो कभी मंदिर , बस इस दौड़ में जीवन पूरा हो जाता है और न उसकी मंदिर की दौर पुरी हो पाती है और न वह कभी घर में तृप्त रहता है ।
भोग हो या भगवान् दोनों की सोच मन से उठती है , मन एक समय में दो पर विचार नहीं कर सकता , यह मन की अपनी सीमा है और मन के इस स्वभाव के कारण मनुष्य द्वैत्य में उलझ कर रह जाता है ।
जब तक मन एक पर केन्द्रित नहीं होता तब तक वह मनुष्य अतृप्त ही रहेगा । जीवन एक दरिया है जो कभी आगे तो कभी पीछे नही बहती , आगे ही आगे चलती जाती है और हम - कभी आगे तो कभी पीछे , ऎसी चाल से क्या मिलेगा ?

एक ऊर्जा है जिसको तंत्र , शिव - शक्ति के माध्यम से हाशिल करता है और भक्त , राधा- सीता के माध्यम से श्री कृष्ण एवं राम को प्राप्त करता है --बस ऐसा समझो की एक घड़ी है चाहे वह सीधी चले या उलटी , कोई फर्क नहीं पड़ता , मात्र अभ्यास होना चाहिए । शिव को तंत्र के जन्म-दाता के रूप में देखा जाता है और
हम शिव से निम्न माध्यमों से जुड़ते हैं -----
[क] पशुपति
[ख] अर्ध नारेश्वर
[ग] शिव लिंगम
[घ] तीसरी आँख वाले शिव की प्रतिमा

अब आप इन चार माध्यमों पर सोचें और आप की जब सोच पूरी होगी तब आप को पता चलेगा की ------

[क] भक्ति में भक्त पहलें नारी ऊर्जा में आता है , यह तब होता है जब ह्रदय का द्वार खुलता है और तब उसे

राम-कृष्ण की खुशबू मिलती है लेकिन तंत्र में ऐसा नहीं है , तंत्र में यह स्थिति तब आती है जब तंत्र फलित होता है अर्थात साधना के अंत में ।

तंत्र की साधना स्त्री-पुरुष का सहयोग मात्र नहीं है , यह दो सविकार उर्जाओं को निर्विकार करनें का योग है ।

====ॐ=====

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