अकेला पन क्या है ?
अकेलापन और घबडाहट का नजदीकी सम्बन्ध है ।
जो अपनें अकेलेपन से लड़ते हैं , उनका जीवन नरक की ओर जाता है ...
और जो अपनें अकलेपन से दोस्ती बनालेते हैं , वे हर पल मुस्कुराते रहते हैं ।
जब कोई अपना अपनें से दूर होने लगता है तब अकेलेपन का एह्शास होता है और यह घबराहट पैदा करता है ।
जब मन उलझन से मुक्त होता है तब घबराहट होती है क्यों की मन का स्वभाव है , उलझनों में रहना ।
अकेलापन दो तरह का होता है ; तन से और मन से । तनके अकेलेपन का तो इलाज है लेकिन मन के अकेलेपन का इलाज कुछ कठिन है । तन के अकेलेपन वाले की यात्रा छोटी होती है , जल्दी उसका अकेलापन दूर हो जाता है लेकिन मन के अकेलेपन वाले के लिए लम्बी यात्रा करनी पड़ती है ।
तन का अकेलापन मन के अकेलेपन का द्वार बन सकता है और मन का अकेलापन तन से मित्रता स्थापित कर सकता है । जब तन का अकेलापन मन के अकेलेपन का द्वार बनता है तब वह ब्यक्ति स्वयं को अकेला नहीं पाता वह खुश रहता है और जब मन का अकेलापन तन की तलाश करता है तब घबराहट होती है और ऐसा ब्यक्ति खुश नहीं रह पाता । तन का अकेलापन मन में एक खोज पैदा करता है और यह खोज भोग की होती है जिस से संसार में ब्याप्त राग से जुड़ना पड़ता है और मन का अकेलापन दो मार्गी होता है । मन का अकेलापन यदि स्थूल बस्तु को खोजता है है तो यह भी भोग की ही खोज होती है और यदि यह अकेलापन प्रकृति से जोड़ता है तो समझो परमात्मा का द्वार दूर नहीं ।
महाबीर-बुद्ध को जब अकेलेपन की खोज की हवा लगी तो दोनों भाग लिए , इस संसार से दूर , छिपा लिए अपनें-अपनें को पहाड़ों की गुफाओं में और जब अकेलेपन का आनद मिला तो पुनः चल पड़े संसार की ओर लोगों को बतानें के लिए की अकेलेपन का क्या आनंद है ?
जब कभी आप को अकेलपन मिले तो आप उस से दोस्ती करें , उस से भागें न , आप की दोस्ती आप को आप से मिला देगी और तब आप को पाता चलेगा की संसार केवल वह नहीं है जिसके पीछे हम हैं , संसार में कुछ और भी है जो सब के होनें का श्रोत है ।
====ॐ====
जो अपनें अकेलेपन से लड़ते हैं , उनका जीवन नरक की ओर जाता है ...
और जो अपनें अकलेपन से दोस्ती बनालेते हैं , वे हर पल मुस्कुराते रहते हैं ।
जब कोई अपना अपनें से दूर होने लगता है तब अकेलेपन का एह्शास होता है और यह घबराहट पैदा करता है ।
जब मन उलझन से मुक्त होता है तब घबराहट होती है क्यों की मन का स्वभाव है , उलझनों में रहना ।
अकेलापन दो तरह का होता है ; तन से और मन से । तनके अकेलेपन का तो इलाज है लेकिन मन के अकेलेपन का इलाज कुछ कठिन है । तन के अकेलेपन वाले की यात्रा छोटी होती है , जल्दी उसका अकेलापन दूर हो जाता है लेकिन मन के अकेलेपन वाले के लिए लम्बी यात्रा करनी पड़ती है ।
तन का अकेलापन मन के अकेलेपन का द्वार बन सकता है और मन का अकेलापन तन से मित्रता स्थापित कर सकता है । जब तन का अकेलापन मन के अकेलेपन का द्वार बनता है तब वह ब्यक्ति स्वयं को अकेला नहीं पाता वह खुश रहता है और जब मन का अकेलापन तन की तलाश करता है तब घबराहट होती है और ऐसा ब्यक्ति खुश नहीं रह पाता । तन का अकेलापन मन में एक खोज पैदा करता है और यह खोज भोग की होती है जिस से संसार में ब्याप्त राग से जुड़ना पड़ता है और मन का अकेलापन दो मार्गी होता है । मन का अकेलापन यदि स्थूल बस्तु को खोजता है है तो यह भी भोग की ही खोज होती है और यदि यह अकेलापन प्रकृति से जोड़ता है तो समझो परमात्मा का द्वार दूर नहीं ।
महाबीर-बुद्ध को जब अकेलेपन की खोज की हवा लगी तो दोनों भाग लिए , इस संसार से दूर , छिपा लिए अपनें-अपनें को पहाड़ों की गुफाओं में और जब अकेलेपन का आनद मिला तो पुनः चल पड़े संसार की ओर लोगों को बतानें के लिए की अकेलेपन का क्या आनंद है ?
जब कभी आप को अकेलपन मिले तो आप उस से दोस्ती करें , उस से भागें न , आप की दोस्ती आप को आप से मिला देगी और तब आप को पाता चलेगा की संसार केवल वह नहीं है जिसके पीछे हम हैं , संसार में कुछ और भी है जो सब के होनें का श्रोत है ।
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