भूल हो गयी

भूल क्या है ?
जब जो चाहा वह न हो सका ,तब, जब इस खंडित कामना में अहंकार की छाया कमजोर होती है , तब-- पता
चलता है की भूल हो गयी ।
भूल होने का एह्शाश एक अवसर है जहाँ से यात्रा का रुख बदल सकता है , यदि आप अपनें भूल को मह्शूश कर रहे हैं तो इसको अपनें हाथों से सरकनें न देना ।
वह , घर के अंधेरे को दूर करना चाहता था------
वह, बार-बार मोमबत्ती जलाया करता था ------
लेकिन मोमबत्ती बार-बार क्यों और कैसे बुझ जाती थी , इसका उसे इल्म न था और जब उसे पता चला तो ----
काफी देर हो चुकी थी , काश उसे कुछ पहले पता चल गया होता -------यह हमारी दशा नहीं , सब की
यही हालत है ।
मेरे एक अफ़्रीकी दोस्त अब से बीस वर्ष पहले अमेरिका से मेरे लिए तोफा के रूप में गीता ले आए थे , वे थे तो मुस्लिम लेकिन लाये गीता , वह गीता मेरे लिए प्रभु का प्रसाद था , लेकिन मैं चूक गया , मैं उसे दस वर्षो तक छुआ भी नहीं , काश यदि उसे अपनाया होता तो बात कुछ और होती , यहबात लगभग बीस वर्ष पुरानी है ।
अब मैं पिछले दस वर्षों से गीता --मात्र गीता पढ़ रहा हूँ और अपनें भूल पर टपकते आंशुओं को रोकनें में
अपनें को असमर्थ देखता हूँ ।
गीता में प्रभु के , सात सौ श्लोकों में से पाँच सौ छप्पन श्लोक हैं और उन में दो सौ श्लोक ऐसे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध हम-आप के दैनिक जीवन से है जिसमे बताई गयी बातें प्रति दिन एक - एक करके सब के जीवन में घटित होती रहती हैं लेकिन हम इन श्लोकों से अनभिज्ञ हैं .....बिचारा गीता भी सिसकता होगा,
गीता में प्रभु के सूत्रों को हमें अपनें मन की दीवारों पर लिखना था लेकिन इनको लिखवा दिया मंदिरों की
दीवारों पर । जब हम मंदिरों के दीवारों पर इन श्लोकों को लिखवाते है तब क्षणिक सुख तो मिलता है लेकिन .......
इस सुख में दुःख का बीज होता है , यह बात भी गीता के उन श्लोकों में होती है जिसको हम पढ़ नहीं पाते।
गीता कहता है--- दुःख का बीज कपास का बीज है जो बैक्टीरिया की तरह फैलता है और सुख का बीज यदि वह बीज सात्विक सुख का है तो वह आम के बीज की तरह होगा , जो फैलता नहीं , धीरे- धीरे ऊपर उठता है ।
प्यारे मित्रों ! आप यह सोच कर दुखी न होयें की आप के अपनें किधर जा रहे हैं ? क्यों जा रहे हैं ? उधर तो आग की दरिया है , आप उनके रुख को मोड़ नहीं सकते लेकिन अपनें सोच को गीता की ओर अवश्य मोड़ सकते हैं ।
यहाँ सब का अपना-अपना मार्ग है जो पूर्व निर्धारित है उसे कोई नहीं मोड़ सकता , हाँ वह उसे मोड़ सकता है जो उस पथ का स्वयं यात्री है । अब आप गीता वाणी को सुनें और इस पर मनन करें -------
गीता सूत्र 3.27
करता भाव अहंकार की उपज है ।
गीता सूत्र 7.20
अज्ञान कामना का गर्भ है ।
यहाँ रिश्ते की सोच एक मजबूत बंधन है , यह भाव न लायें की यह आप की पत्नी , यह आप की औलाद, सब आप के गुलाम हैं , यहाँ कोई किसी का गुलाम नहीं, सब सम्राट हैं , सब का अपना-अपना मार्ग है , उन्हें रोकनें का प्रयाश कामयाब तो होगा नहीं आप दुखी जरुर होंगे ।
मेरे प्यारे मित्रों !
आप अपनें जीवन के इतिहास को जरूर पढ़े , पढ़ते वक्त यदि आँखें अपनें को रोक न पायें तो कोई बात नहीं ,
उनसे जोर -जबरदस्ती न करें बस एक काम करें ------
चिंता की चिता की तरफ़ न जा कर गीता की शरण में जाएँ ....एक बार, केवल एक बार जाएँ तो सही , आप को
पता चल जाएगा की आप अभी तक कहाँ और क्यों भटक रहे थे ?
======ॐ=======

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