गंगा जल से समाधी ---2
आए दिन आन्दोलन हो रहे हैं , इस बात पर की गंगा को साफ़ करो ।
भारत में धर्म के नाम से जितनी संस्थाएं हैं उनके पास जितना धन है शायद उतना धन सरकार के पास भी न हो ,
संस्थाओं के धन से एक क्या दस गंगा निर्मल की जा सकती हैं लेकिन कौन पैसा खर्च करे , पैसे की पकड़
योग से भोग में उतार ले आती है ।
विज्ञानं के पास अभी टाइम स्पेस का केन्द्र नहीं है लेकिन इक्कीसवीं शताब्दी में बिश्व का केन्द्र धन है ।
[क] हिंदू ब्यवस्था में मनुष्य की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं ।
[ख] भारत सरकार का बैज्ञानिक अनुशंधान- केन्द्र --Toxicological Institute, Luchnow का कहना है ....
गंगा में डाला गया आर्गेनिक पदार्थ कुछ किलो मीटर यात्रा करनें के बाद गंगा में अपना अस्तित्व खो देता है ।
गति एक मात्रऐसा तत्त्व है जिसके आधार पर सजीव - निर्जीव को जाना जाता है , लेकिन विज्ञानं में गति रहित
कोई सूचना नहीं है -- एक क्वार्क से गलेक्सी तक सब गति में हैं अर्थात अप्रत्यक्ष रूप में विज्ञानं में
निर्जीव कोई भी चीज नहीं है । भारत में हिंदू लोग कहते हैं ---कण-कण में भगवान है और भगवन
निर्जीव हो नहीं सकता । विज्ञानं और गीता कहते हैं --मन शरीर समाप्ति के बाद भी जिन्दा रहता है , एक मुर्दे
को यदि कब्र से निकाल कर देखा जाय तो उसके बाल एवं नाखून बढे हुए मिलते हैं अर्थात उनमें जीव होता है ।
अभी - अभी ऊपर बताया गया की गंगा सभी ओरगेनिक पदार्थों को अपनें में घुला लेती है , क्या गंगा जल में
कोई ऐसा पदार्थ है , कोई ऐसा रसायन है जिसमें वह शक्ति हो जो सब को अपनें में घुला सके ? इस प्रश्न का
उत्तर विज्ञानं के पास अभी तक नहीं है ।
गैलेलियो से आज तक --पिछले चार सौ सालों में बिज्ञान दिन दूनी रात चौगुनी गति से ऊपर उठा है और इस
विकास से पृथ्वी को निर्मल होना चाहिए था लेकिन हो रहा है ठीक उल्टा , ऐसा क्यों ?
विज्ञानं की उन्नति एवं संसार का निर्विकार रहना , दोनों में सामान अनुपात होना चाहिए था लेकिन देखनें
में बिलोमानुपात मिलता है , ऐसा क्यों ?
आज विज्ञानं , जो है उसको समाप्त कर रहा है और जो नहीं है उसको मारनें के लिए खोज रहा है , यह कैसा
विज्ञानं है ? आज जब यह पृथ्वी आखिरी श्वास भर रही है तो वैज्ञानिक नयी पृथ्वी की खोज में लगे हैं , उनकी
यह खोज उनको चैन से रहनें नहीं दे रही ।
गंगा एक नदी नहीं है , गंगा उर्जा का एक अनुपम श्रोत है जो कल था , आज है और कल भी रहेगा , क्या प्रभु को
कोई गन्दा बना सकता है ? क्या प्रभु कभी मैला हो सकता है ? क्या प्राण उर्जा गन्दी हो सकती है ? नहीं
फ़िर गंगा को कौन मैला कर सकता है ?
गंगा की लबाई-चौड़ाई और रूप को न देखो , गंगा तट पर गंगा की उर्जा से अपनें को चार्ज करो और तब
आप को पता चलेगा की गंगा में कौन सी --------
करेंट प्रवाहित हो रही है ?
=====ॐ=====
भारत में धर्म के नाम से जितनी संस्थाएं हैं उनके पास जितना धन है शायद उतना धन सरकार के पास भी न हो ,
संस्थाओं के धन से एक क्या दस गंगा निर्मल की जा सकती हैं लेकिन कौन पैसा खर्च करे , पैसे की पकड़
योग से भोग में उतार ले आती है ।
विज्ञानं के पास अभी टाइम स्पेस का केन्द्र नहीं है लेकिन इक्कीसवीं शताब्दी में बिश्व का केन्द्र धन है ।
[क] हिंदू ब्यवस्था में मनुष्य की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं ।
[ख] भारत सरकार का बैज्ञानिक अनुशंधान- केन्द्र --Toxicological Institute, Luchnow का कहना है ....
गंगा में डाला गया आर्गेनिक पदार्थ कुछ किलो मीटर यात्रा करनें के बाद गंगा में अपना अस्तित्व खो देता है ।
गति एक मात्रऐसा तत्त्व है जिसके आधार पर सजीव - निर्जीव को जाना जाता है , लेकिन विज्ञानं में गति रहित
कोई सूचना नहीं है -- एक क्वार्क से गलेक्सी तक सब गति में हैं अर्थात अप्रत्यक्ष रूप में विज्ञानं में
निर्जीव कोई भी चीज नहीं है । भारत में हिंदू लोग कहते हैं ---कण-कण में भगवान है और भगवन
निर्जीव हो नहीं सकता । विज्ञानं और गीता कहते हैं --मन शरीर समाप्ति के बाद भी जिन्दा रहता है , एक मुर्दे
को यदि कब्र से निकाल कर देखा जाय तो उसके बाल एवं नाखून बढे हुए मिलते हैं अर्थात उनमें जीव होता है ।
अभी - अभी ऊपर बताया गया की गंगा सभी ओरगेनिक पदार्थों को अपनें में घुला लेती है , क्या गंगा जल में
कोई ऐसा पदार्थ है , कोई ऐसा रसायन है जिसमें वह शक्ति हो जो सब को अपनें में घुला सके ? इस प्रश्न का
उत्तर विज्ञानं के पास अभी तक नहीं है ।
गैलेलियो से आज तक --पिछले चार सौ सालों में बिज्ञान दिन दूनी रात चौगुनी गति से ऊपर उठा है और इस
विकास से पृथ्वी को निर्मल होना चाहिए था लेकिन हो रहा है ठीक उल्टा , ऐसा क्यों ?
विज्ञानं की उन्नति एवं संसार का निर्विकार रहना , दोनों में सामान अनुपात होना चाहिए था लेकिन देखनें
में बिलोमानुपात मिलता है , ऐसा क्यों ?
आज विज्ञानं , जो है उसको समाप्त कर रहा है और जो नहीं है उसको मारनें के लिए खोज रहा है , यह कैसा
विज्ञानं है ? आज जब यह पृथ्वी आखिरी श्वास भर रही है तो वैज्ञानिक नयी पृथ्वी की खोज में लगे हैं , उनकी
यह खोज उनको चैन से रहनें नहीं दे रही ।
गंगा एक नदी नहीं है , गंगा उर्जा का एक अनुपम श्रोत है जो कल था , आज है और कल भी रहेगा , क्या प्रभु को
कोई गन्दा बना सकता है ? क्या प्रभु कभी मैला हो सकता है ? क्या प्राण उर्जा गन्दी हो सकती है ? नहीं
फ़िर गंगा को कौन मैला कर सकता है ?
गंगा की लबाई-चौड़ाई और रूप को न देखो , गंगा तट पर गंगा की उर्जा से अपनें को चार्ज करो और तब
आप को पता चलेगा की गंगा में कौन सी --------
करेंट प्रवाहित हो रही है ?
=====ॐ=====
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