तंत्र और योग ---8
तंत्र को आप यदि समझना चाहते हैं तो देखिये --------
[क] कोणार्क का मंदिर ।
[ख] खजुराहो के मन्दिर ।
[ग] अजन्ता-अलोरा की ललित कला और मूर्तियाँ ।
[घ] एलिफंता केव की मूर्तियाँ ।
[च] 12 ज्योतिर्लिन्गम ।
[छ ] 51 शक्ति पीठ ।
भारत में प्राचीनतम साधना श्रोतों में ज्योतिर्लिन्गम और शक्ति पीठों का नाम आता है और अन्य लगभग
250 BCE से 250 CE के मध्य की होनें की कही जा सकती हैं । खजुराहो के मंदिरों का निर्माण
चंदेला राजाओं द्वारा लगभग 1200 CE के आस-पास कराया गया था ।
भारत में साधना श्रोतो में तंत्र अति प्राचीनतम माध्यम है इस बात को नक्कारा नहीं जा सकता लेकीन
धीरे- धीरे इसको लोग ढकनें लगे और आज यह परम श्रोत जादू-टोना का बिषय बनकर दब चुका है ।
त्रेता-युग में राम-रावण युद्ध सीता के लिए हुआ , द्वापर का महाभारत युद्ध द्रोपती के लिए हुआ और आज
कलियुग में आप प्रति दिन समाचार पत्रों में पढ़ते ही होंगे और यदि इस सम्बन्ध में गीता में परम
श्री कृष्ण की बात को देखें -गीता श्लोक [ 3.37- 3.42 तक ] तो आप को आश्चर्य होगा की आज जो कुछ
भी हो रहा है उस बात को गीता आज से हजारों वर्ष पूर्व में कह चूका है । गीता में परम श्री कृष्ण
कहते हैं ----मनुष्य काम के सम्मोहन के कारण पाप - कर्म करता है और आज कलि - युग में आप इस बात
का प्रदर्शन देख रहे हैं ।
गीता [ श्लोक ..7.11 ] में परम श्री कृष्ण कहते हैं ----
धर्माविरोद्धो कामः अहम्
अर्थात धर्मानुकुल काम मैं हूँ । गीता में अर्जुन धर्म की परिभाषा नहीं पूछते , क्यों की उनको धर्म की परिभाषा
मालूम है और आज कितनें लोग धर्म की परिभाषा को समझते हैं ? आज जितनें लोग हैं , धर्म की परिभाषाएं
भी उतनी हैं । प्रकृति की जरुरत को जो ब्यक्त करे वह धर्म है । गीता में अर्जुन के सोलह प्रश्न हैं जिनमें
वे पूछते हैं --ब्रह्म क्या है ? अधिभूत क्या है ? कर्म क्या है ? स्वभाव क्या है ? आदि- आदि लेकीन धर्म के बारे में
कुछ नहीं पूछते ।
तंत्र वह सिखाता है जिसको परम श्री कृष्ण अपनें सूत्र 7.11 में बता रहे हैं अर्थात ------
काम से भोग की पकड़ को अलग करना और जब भोग - भाव काम से हट जाता है तब वह काम गुनातीत
काम हो जाता है जिसको परमात्मा कहता है ---गीता ।
काम हो या राम जहां भी गुण - तत्व हैं वह , योग नहीं भोग है ।
===ॐ=====
[क] कोणार्क का मंदिर ।
[ख] खजुराहो के मन्दिर ।
[ग] अजन्ता-अलोरा की ललित कला और मूर्तियाँ ।
[घ] एलिफंता केव की मूर्तियाँ ।
[च] 12 ज्योतिर्लिन्गम ।
[छ ] 51 शक्ति पीठ ।
भारत में प्राचीनतम साधना श्रोतों में ज्योतिर्लिन्गम और शक्ति पीठों का नाम आता है और अन्य लगभग
250 BCE से 250 CE के मध्य की होनें की कही जा सकती हैं । खजुराहो के मंदिरों का निर्माण
चंदेला राजाओं द्वारा लगभग 1200 CE के आस-पास कराया गया था ।
भारत में साधना श्रोतो में तंत्र अति प्राचीनतम माध्यम है इस बात को नक्कारा नहीं जा सकता लेकीन
धीरे- धीरे इसको लोग ढकनें लगे और आज यह परम श्रोत जादू-टोना का बिषय बनकर दब चुका है ।
त्रेता-युग में राम-रावण युद्ध सीता के लिए हुआ , द्वापर का महाभारत युद्ध द्रोपती के लिए हुआ और आज
कलियुग में आप प्रति दिन समाचार पत्रों में पढ़ते ही होंगे और यदि इस सम्बन्ध में गीता में परम
श्री कृष्ण की बात को देखें -गीता श्लोक [ 3.37- 3.42 तक ] तो आप को आश्चर्य होगा की आज जो कुछ
भी हो रहा है उस बात को गीता आज से हजारों वर्ष पूर्व में कह चूका है । गीता में परम श्री कृष्ण
कहते हैं ----मनुष्य काम के सम्मोहन के कारण पाप - कर्म करता है और आज कलि - युग में आप इस बात
का प्रदर्शन देख रहे हैं ।
गीता [ श्लोक ..7.11 ] में परम श्री कृष्ण कहते हैं ----
धर्माविरोद्धो कामः अहम्
अर्थात धर्मानुकुल काम मैं हूँ । गीता में अर्जुन धर्म की परिभाषा नहीं पूछते , क्यों की उनको धर्म की परिभाषा
मालूम है और आज कितनें लोग धर्म की परिभाषा को समझते हैं ? आज जितनें लोग हैं , धर्म की परिभाषाएं
भी उतनी हैं । प्रकृति की जरुरत को जो ब्यक्त करे वह धर्म है । गीता में अर्जुन के सोलह प्रश्न हैं जिनमें
वे पूछते हैं --ब्रह्म क्या है ? अधिभूत क्या है ? कर्म क्या है ? स्वभाव क्या है ? आदि- आदि लेकीन धर्म के बारे में
कुछ नहीं पूछते ।
तंत्र वह सिखाता है जिसको परम श्री कृष्ण अपनें सूत्र 7.11 में बता रहे हैं अर्थात ------
काम से भोग की पकड़ को अलग करना और जब भोग - भाव काम से हट जाता है तब वह काम गुनातीत
काम हो जाता है जिसको परमात्मा कहता है ---गीता ।
काम हो या राम जहां भी गुण - तत्व हैं वह , योग नहीं भोग है ।
===ॐ=====
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