गीता मर्म - 48
गीता में तत्त्व शब्द क्या है ?
भौतिक विज्ञान में बीसवीं शताब्दी में आकर एक नया विज्ञान - कण विज्ञान बन गया जिसको अंग्रेजी में
Particle Physics कहते हैं । गीता का तत्त्व विज्ञान कुछ कण - विज्ञान जैसा है । किसी बिषय को
तत्त्व से जाननें का अर्थ है - उसको हर पहलू से समझना , जैसा वह है , वह भी बुद्धि स्तर पर ।
आत्मा को तत्त्व से जाननें का अर्थ है - आत्मा को करता के रूप में देखना , द्रष्टा के रूप में देखना , भौतिक
बिज्ञान की दृष्टि से देखना , रसायन बिज्ञान की दृष्टि से देखना और जीव विज्ञान की दृष्टि से देखना ; इस
प्रक्रिया में सोचनें वाला कब और कैसे मन - बुद्धि से परे की यात्रा पर हो जाता है , उसे पता तक नहीं चल पाता ।
तत्त्व से जाननें का भाव है - ऐसे समझना जैसा वह है , ऎसी समझ जो संदेह रहित हो , और जिसमें कोई प्रश्न
बनानें की कोई गुंजाइश न दिखे ।
एक और उदाहरन लेते हैं ; जैसे यदि काम [ sex ] को समझना है तो इसको समझनें के लिए हमें निम्न तत्वों
को समझना पड़ेगा :---
** राजस गुण क्या है ?
** कामना , क्रोध क्या हैं ?
** कामना का बीज आसक्ति क्या है ?
** आसक्ति का बीज मनन क्या है ?
** मनन का केंद्र ........
मन और बुद्धि क्या हैं ?
** काम से जो मिलता है , वह क्या है - क्या उस से जो सुख मिलता है उसमें दुःख का बीज नहीं होता ?
** क्या काम का भोग क्षणिक सुख का माध्यम नहीं है ?
इस प्रकार से एक को तत्त्व से जाननें के लिए अनेक उससे सम्बंधित तत्वों को देखना पड़ता है ।
गीता बुद्धि को योग में बदल कर कहता है ------
अब तुम जिधर चाहो उधर जाओ , मेरा काम हो गया , या ------
अर्जुन की तरह शरणागत हो कर परिणाम को बिना सोचे भोग - संसार में भोग - युद्ध में उतरो ....
या -----
मोह में उलझ कर अपनें जीवन को अपनें पीठ पर लादे भागते रहो ॥
===== ॐ ======
भौतिक विज्ञान में बीसवीं शताब्दी में आकर एक नया विज्ञान - कण विज्ञान बन गया जिसको अंग्रेजी में
Particle Physics कहते हैं । गीता का तत्त्व विज्ञान कुछ कण - विज्ञान जैसा है । किसी बिषय को
तत्त्व से जाननें का अर्थ है - उसको हर पहलू से समझना , जैसा वह है , वह भी बुद्धि स्तर पर ।
आत्मा को तत्त्व से जाननें का अर्थ है - आत्मा को करता के रूप में देखना , द्रष्टा के रूप में देखना , भौतिक
बिज्ञान की दृष्टि से देखना , रसायन बिज्ञान की दृष्टि से देखना और जीव विज्ञान की दृष्टि से देखना ; इस
प्रक्रिया में सोचनें वाला कब और कैसे मन - बुद्धि से परे की यात्रा पर हो जाता है , उसे पता तक नहीं चल पाता ।
तत्त्व से जाननें का भाव है - ऐसे समझना जैसा वह है , ऎसी समझ जो संदेह रहित हो , और जिसमें कोई प्रश्न
बनानें की कोई गुंजाइश न दिखे ।
एक और उदाहरन लेते हैं ; जैसे यदि काम [ sex ] को समझना है तो इसको समझनें के लिए हमें निम्न तत्वों
को समझना पड़ेगा :---
** राजस गुण क्या है ?
** कामना , क्रोध क्या हैं ?
** कामना का बीज आसक्ति क्या है ?
** आसक्ति का बीज मनन क्या है ?
** मनन का केंद्र ........
मन और बुद्धि क्या हैं ?
** काम से जो मिलता है , वह क्या है - क्या उस से जो सुख मिलता है उसमें दुःख का बीज नहीं होता ?
** क्या काम का भोग क्षणिक सुख का माध्यम नहीं है ?
इस प्रकार से एक को तत्त्व से जाननें के लिए अनेक उससे सम्बंधित तत्वों को देखना पड़ता है ।
गीता बुद्धि को योग में बदल कर कहता है ------
अब तुम जिधर चाहो उधर जाओ , मेरा काम हो गया , या ------
अर्जुन की तरह शरणागत हो कर परिणाम को बिना सोचे भोग - संसार में भोग - युद्ध में उतरो ....
या -----
मोह में उलझ कर अपनें जीवन को अपनें पीठ पर लादे भागते रहो ॥
===== ॐ ======
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