गीता मर्म - 41


गीता के तीन सूत्र ----

जो हमें हमारी पहचान दिखाते हैं ॥
[क] गीता - 2.14
इन्द्रिय सुख क्षणिक हैं ॥
[ख] गीता - 5.22
इन्द्रिय सुख में दुःख का बीज पल रहा होता है ॥
[ग] गीता - 18.38
इन्द्रिय - बिषय मिल कर जो सुख देते हैं वह भोग के समय तक अमृत सा लगता है लेकीन उसमें
बिष होता है ॥

इन्द्रिय सुख के अलावा और कौन सा सुख है ?
पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और उनके अपनें -अपनें बिषय हमें सुख - दुःख से गुजारते हैं और इनके
माध्यम से हम :-----
[क] संसार से जुड़े हुए हैं , संसार अर्थात तीन गुणों की मया जो हमें अपनें में रख कर
परमात्मा से दूर रखती है ।
[ख] ज्ञानेन्द्रियाँ एवं बिषयों के सहयोग से हम भोग तत्वों को समझ कर माया से
परे पहुँच कर माया मुक्त
हो कर माया पति को समझ कर धन्य हो जाते हैं जिसको गीता परमानंद कहता है ।
इन्द्रिय सुख का राग , हमारी पीठ प्रभु की ओर करता है
और --------
इन्द्रिय सुख - दुःख का द्रष्टा , परमानंद में रहता है ॥

===== ॐ =====

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