गीता सन्देश - 09

गीता कहता है :------

जब कोई ज्ञानेन्द्रिय अपनें बिषय में पहुंचती है तब ........
मन उस बिषय के रस को प्राप्त करनें के लिए उपाय सोचता है , जिसको मनन कहते हैं ।
मनन से संकल्प - विकल्प उठते हैं ।
संकल्प से कामना बनती है ।
कामना टूटनें का भय , क्रोध पैदा करता है , और ------
कामना पूरी होनें की आशा , अहंकार को सघन करती है ॥

संकल्प के साथ विकल्प का होना संकल्प को कमजोर बनाता है : विकल्प का अर्थ है संदेह के साथ संकल्प ।
जहां संदेह है , वहाँ सीधी रेखा में यात्रा का होना असम्भव सा है ; कभी आगे तो कभी पीछे पैर चलते हैं और
इस स्थिति में हम जहां होते हैं , वहीं के वहीं रहते हैं , देखिये इस सन्दर्भ में इस कथा को :-----

पूर्णिमा की रात थी एक गाँव के कुछ नौजवान रात को नदी में नौका विहार का प्रयोजन किया ।
अपनें साथ खानें - पीनें की चीजों को ले कर आ पहुंचे नदी के तट पर ,
बैठे एक नाव पर और लगे करनें मस्ती ।
सारी रात खाते पीते रहे और मस्ती के आलम में झूमते रहे , समय का कोई पता न था , उनको ।
ऐसा लगनें लगा जैसे सुबह होनें ही वाली हो , चिड़ियों की आवाजे चारों तरफ से आ रही थी ,
उनमें से एक नें कहा , भाई
ज़रा नाव को रोकना , बाहर उतर कर देखते हैं , यह कौन सा देश आगया है ?
वह नीचे उतारा , और उसके ही गाँव का एक उसका चाचा उसे दिखा , उसनें पूछा , चाचाजी ! आप यहाँ ?
चाचा बोला , बेटे ! तुम यहाँ मस्ती में खा पी रहा है और हम लोग सारी रात तेरे को खोजते रहे , जा घर वाले
राह देख रहें होंगे । वह लड़का तो घबडाया और नाव पर जा कर बोला - भाइयों हम लोग कहीं गए नहीं हैं ,
यह नाव तो उसी जगह पर है , क्यों की नशे में हमनें इसे कहते से खोला ही न था , तो यह बिचारी चलती कैसे ?
हम लोग जीवन को नशे में चला रहे हैं , बिना कहते से रस्सी को खोले ,
और अंत समय जब आ जाता है तब
एक झलक मिलती है की ........
बहुत गलती हो गयी ॥
सीधी यात्रा - भोग से योग के माध्यम से परम धाम की होती है और ......
भोग की यात्रा वैसी होती है जैसे नौजवानों का नौका बिहार ॥
आप क्या चाह रहे हैं ?

====== ॐ ======

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