गीता सन्देश - 13

आसक्ति एक माध्यम है , प्रभु में रहनें का

गीता सन्देश के माध्यम से हम भोग - तत्वों [ गुण - तत्वों ] को देख रहे हैं , और आज हम ......
आसक्ति में गीता के कुछ और सूत्रों को देखते हैं ॥
[क] सूत्र - 2.56
प्रभु कहते हैं ---- आसक्ति , क्रोध और भय रहित स्थिर प्रज्ञ होता है ॥
[ख] सूत्र - 4.10
यहाँ प्रभु कह रहे हैं .....
राग , भय , क्रोध रहित ब्यक्ति ज्ञानी होता है जो हर पल मुझमें रहता है ॥
[ग] सूत्र - 5.11
आसक्ति रहित स्थिति में पहुंचा योगी तन , मन औत बुद्धि से जो करता है ,
उस से वह और निर्मल होता है ॥

आसक्ति वह पहला सूत्र है जो पतंग की डोर जैसा है ,
जिसकी अनुपस्थिति ज्ञान योग में पहुंचा कर
परम आनंद के रस में डुबोती है
और जिसकी उपस्थिति .......
भोग से भोग में रख कर सम्मोहित किये हुए प्रभु से दूर रखती है ॥
जिसकी डोर टूट गयी , वह पहुँच गया उस आयाम में
जिसको शब्दों में ढालना कठीन सा है पर जिसमें रहना किसी - किसी को
युगों के बाद प्रभु प्रसाद रूप में मिलता है ॥
आप भी इस प्रसाद को ग्रहण कर सकते हैं , बशर्ते .....
अपनें को गीता में रखें ॥

===== ॐ =====

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