गीता मर्म - 39


न हि कश्चित् क्षणं अपि जातु तिष्ठति अकर्म - कृत ।
कार्यते हि अवश : कर्म सर्व: प्रकृति - जै: गुण इव: ॥
श्लोक - 3.5

यहाँ प्रभु कहते हैं :-----
अर्जुन ! ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो एक पल के लिए भी कर्म रहित हो सके ।
यहाँ सब को कर्म तो करते ही रहना है ।

मनुष्य क्यों कर्म मुक्त नहीं हो सकता ?

इस बात के लिए प्रभु कह रहे हैं :---------
कर्म करनें की ऊर्जा , गुण समीकरण से मिलती है , तीन गुणों का मनुष्य में होना
अति आवश्यक होता है
क्योंकि तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं [ गीता - 14.5 ] और
तीन गुणों में जो गुण ऊपर होता है ,
उसके स्वभाव के अनुकूल कर्म होता है ।
गुण समीकरण के लिए गीता में श्लोक - 14.10 है ।

==== om =====

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