गीता मर्म - 49


गीता के दो सूत्र :------------

[क] यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानं धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहं ॥
गीता - 4.7

[ख] परित्राणाय साधुनां बिनाशाय च दुष्कृताम ।
धर्मसंथापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥

चलिए देखते हैं यहाँ गीता क्या सीख दे रहा है ?
जब - जब धर्म का पतन होनें लगता है , अधर्म ऊपर उठनें लगता है , तब - तब मैं ------
धर्म की पुनः स्थापना के लिए ....
दुष्टों के बिनाश के लिए ......
साधू पुरुषों के हित के लिए ....
हर युग में ------
अब्यक्त से ब्यक्त रूप में प्रकट होता हूँ ॥

धर्म का पतन होता ही नहीं , धर्म के ऊपर अधर्म की चादर आजाती है , लोग अधर्म से आकर्षित होनें
लगते हैं , लोगों को धर्म निर्जीव सा दिखनें लगता है , साधु लोग साधाना से दूर हो जाते हैं , साधू तो
रह नहीं पाते , साधू जैसा स्वयं को दिखानें लगते हैं , अधर्म का आकर्षण लोगों के मन - बुद्धि पर सम्मोहन
कर देता है और -----
मनुष्य , मनुष्य नहीं रहता , दरिंदा हो जाता है , तब ......
पृथ्वी पर एक ऎसी ऊर्जा का क्षेत्र बन जाता है जो .........
प्रभु को निराकार से साकार रूप धारण करनें के लिए प्रार्थना करनें लगता है ॥
प्रभु को क्या पता नही , वे तो सब देख ही रहे हैं , जो कुछ भी हो रहा होता है ,सब उनकी ऊर्जा से ही होता
रहता है क्योंकि मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो युग परिवर्तन के लिए वातावरण तैयार करता है ।
प्रभु का साकार रूप में आने का अर्थ है - युग परिवर्तन ॥
क्या कारण है की ------
बार - बार प्रभु को साकार रूपों में भारत भूमि पर अवतरित होना पड़ता है ?
क्या भारत का प्रभु अलग है और अन्य देशों का अलग ?
क्या भारत में अधर्म की हवा ज्यादा तेज गति से चलती है ?
क्या भारतीय अधर्म से जल्दी आकर्षित होते हैं ?
एक नही अनेक प्रश्न हैं जिन पर आप को सोचना है और तब जा कर आप का मन - बुद्धि तंत्र
प्रश्न रहित हो कर सत पर टिक जायेंगे ॥
तैरिये , खूब तैरिये , गीता मेंजितना तैरेंगे गीता आप को उतनी ही अधिक ऊर्जा से
भरता रहेगा ॥

===== ॐ ======

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