गीता अमृत - 74

योग सिद्धि का अनुभव कैसा होता है ?

गीता श्लोक - 5.5 में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ........
योग सिद्धि का अनुभव एक सांख्य - योगी का एवं अन्य योगियों का एक सा होता है ।
गीता श्लोक - 4.38 में प्रभु कहते हैं .........
योग सिद्धि पर ज्ञान की प्राप्ति होती है , और गीता श्लोक - 13.2 में ज्ञान की परिभाषा देते हुए प्रभु कहते हैं ......
क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही , ज्ञान है । गीता श्लोक - 13.7.... 13.11 तक में प्रभु ग्यानी कौन है ? इस बात को स्पष्ट
करते हुए कहते हैं ........
आसक्ति , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अहंकार रहित सम भाव वाला ब्यक्ति , ग्यानी होता है ।

अब समय है इस बात पर सोचनें का ----- योग सिद्धि में क्या घटित होता है ?
विज्ञानं कहता है ---- एक सामान्य भोगी ब्यक्ति में उसके अन्दर ऊर्जा की आब्रिती लगभग 350 cycle per second होती है और ध्यान की गहराई में पहुंचे योगी में यह आब्रिती लगभग 200.000 cycle per second की हो जाती है जहां वह योगी स्वयं को अपनें शरीर से बाहर होना महसूश करता है जिसको
out of body experience कहते हैं ।
योग सिद्धि पर योगी के अन्दर मन - बुद्धि तो स्थिर होते हैं और चेतना का फैलाव इतना हो जाता है की शरीर के कण - कण में चेतना होती है ।
चेतना का फैलाव , प्रभु मय बनाता है और गुण चेतना को
फैलानें नहीं देते ।
जब तक -----
गुणों के सम्मोहन का प्रभाव है .....
भोग तत्वों की गुलामी है ....
काम जीवन का केंद्र है .....
तब तक ------
प्रभु से जुड़ना संभव नहीं ।
प्रभु की हवा जब लगती है तब चाहे वह -----
सांख्य - योगी हो , या .....
कोई अन्य योगी , सब का अनुभव एक सा होता है जो ....
सत का अनुभव होता है ।

==== ॐ =======

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