गीता अमृत - 56

कर्म का सम्बन्ध आत्मा से नहीं है

जो पैदा होता है , वह एकदिन मरता भी है चाहे -----
वह जीव हो या
शब्द

आत्मा शब्द को हम लोगों नें मार डाला । बीसवीं शताब्दी के मध्य जब जर्मन विचारक नित्झे बोले ---
परमात्मा मर चुका है , बश उसकी इतनी सी बात सुन कर लोग नाचनें लगे और उसकी आगे की बात को कोई भी न सुन सका क्योंकि लोग यही सुनना चाहते थे । आप मेरी बात - आत्मा शब्द मर चुका है को सुनकर
आप भी नाचना न प्रारम्भ कर देना । नित्झे की आगे की बात थी - परमात्मा को हम सब मार चुके हैं और अब वह कभी न उठेगा । नित्झे की बात में दम है , वह इतनी हिम्मत तो रखता है कहनें की ।

आइये अब गीता की कुछ बातों को देखते हैं -----

[क] अज्ञानी आत्मा को करता समझता है .... गीता श्लोक - 18.16
[ख] करता भाव अहंकार से आता है ..... गीता श्लोक - 3.27
[ग] करता भाव रहित कर्म करनें वाला पाप नहीं
करता .... गीता श्लोक - 18.17
[घ] करता भाव रहित ब्यक्ति प्रभु से परिपूर्ण होता है
.... गीता श्लोक - 5.6
[च] प्रभु से परिपूर्ण ब्यक्ति ही ब्राह्मण है ..... गीता श्लोक - 2.46
[छ] राजस गुण के तत्त्व - काम का सम्मोहन , पाप करनें की ऊर्जा देता है .... गीता श्लोक - 3.37
[ज] कामना एवं मोह अज्ञान की जननी हैं .....
गीता श्लोक 7.20, 18.72 - 18.73

आत्मा करता नहीं अपितु ------
द्रष्टा है
साक्षी है
अब्याक्तातीत है
देह में प्रभु है
यह सर्वत्र है और यह ....
जीवन की ऊर्जा है ।

====== ॐ=====

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