गीता अमृत - 65

भारतीय सामाजिक ब्यवस्था

यहाँ जो आगे दिया जाएगा वह गीता के निम्न श्लोकों के आधार पर होगा --------
[ 2.14, 2.45 ], [ 3.5, 3.27, 3.33 ], 5.27, 8.3, 14.10, 18.38, 18.41 - 18.44

प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ......
[क] ब्राह्मण , क्षत्रिय , बैश्य एवं शूद्र - चार वर्णों की रचना मेरे द्वारा उनके कर्म - स्वभाव एवं गुणों के
आधार पर की गयी है ।
[ख] गुण परिवर्तनशील हैं , गुणों के आधार पर स्वभाव बनता है , स्वभाव से कर्म होता है , मनुष्य का
स्वभाव , अध्यात्म है ।
[ग] गुण कर्म करता हैं , गुणों के प्रभाव में जो कर्म होते हैं , वे भोग कर्म होते हैं , जिनके भोग काल में सुख
सा आभाष होता है पर उसका परिणाम दुःख होता है ।
[घ] भोग कर्म कोई ऐसा नहीं है जिसमें दोष न हों ।

ऊपर की चार बातें जो गीता में प्रभु श्री कृष्ण द्वारा कही गयी हैं , ध्यान का मार्ग
बन सकती हैं ।
अब हमें इन पर ध्यान करना चाहिए .......
## असत से सत में कैसे पहुंचा जाए
## भोग कर्मों से बैराग्य में कैसे पहुंचा जाए ?
## अज्ञान से ज्ञान में प्रवेश कैसे किया जाए ?
## गुण आधारित जातियां अपरिवर्तनशील कैसे हो गयी जबकि गुण स्वतः परिवर्तनशील हैं ?
स्वभाव , गुण एवं कर्म यदि जातियों के आधार हैं तो फिर जातियां परिवर्तनशील होनी चाहिए ।

===== ॐ ======

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