श्रीमद्भागवत पुराण में ऋषि मैत्रेय का तत्त्व ज्ञान
भागवत पुराण में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा सांख्य दर्शन के तत्त्व ज्ञान अर्थात प्रकृति - पुरुष , प्रकृति - पुरुष संयोग से सृष्टि - रचना को प्रस्तुत किया गया है ।
💐 इनमें से ब्रह्मा का तत्त्व ज्ञान पिछले अंक में दिया गया और आज आप मैत्रेय ऋषि के तत्त्व ज्ञान को दो स्लाइड्स के माध्यम से देख रहे हैं ।
मैत्रेय ऋषि का आश्रम गंगा द्वार ( आजका हरिद्वार ) गंगा के तट पर हुआ करता था । जब प्रभु श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र (आजका सौराष्ट्र ) में सागर तट पर सरस्वती के तट पर उद्धव को तत्त्व ज्ञान दे रहे थे , उस समय उनके साथ वहां मैत्रेय ऋषि भी थे।
द्वारका सागर में लीन होने को है , यदुबंशी आपस में लड़ कर स्वर्ग सिधारते जा रहे हैं और प्रभु अपनें गरुड़ रथ का इंज़ार स्वधाम जाने के किये कर रहे हैं , ऐसे समय में प्रभु उद्धव को तत्त्व ज्ञान दे रहे हैं । यहाँ प्रभास क्षेत्र का दृश्य थीक कुरुक्षेत्र के दृश्य जैसा ही है ; कुरुक्षेत्र युद्ध में गीता ज्ञान था और यहाँ सांख्य तत्त्व ज्ञान । यहाँ प्रभु मैत्रेय ऋषि को कहते हैं , आपके आश्रम में निकट भविष्य में विदुर जी आनेवाले हैं । आप इस तत्त्व ज्ञान को उन्हें दीजियेगा ।
बड़ा आश्चर्य होता है कि जब विदुर को मैत्रेय ऋषि प्रभु श्री कृष्ण द्वारा दिए गए ज्ञान को दिए थे फिर यह ज्ञान प्रभु द्वारा दिए ज्ञान से भिन्न क्यों है ? आगे जब आप कृष्ण जे तत्त्व ज्ञान को देखेंगे तब यह बात सामने आयेगी ।
प्रभु श्री कृष्ण यहाँ 125 साल रहे जिसमें से प्रारंभिक 30 साल ( लगभग ) मथुरा - वृन्दाबन में रहे और शेष समय द्वारका में ।
बहुत मस्त कथा है और इस कथा में एक नहीं अनेक शोध बिषय छिपे हैं । जब कभी समय आपको पुकारे तो भागवत कथा में डूबने से चूकना नहीं ।
अब स्लाइड को देखते हैं ⬇️
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