पतंजलि के शब्दों में स्वाध्याय क्या है ?

 पतंजलि अष्टांगयोग में यम के 05 अंगों के अभ्यास -सिद्धि के बाद नियम के 05 अंगों का जीवन भर अभ्यास करना होता है । नियम के 05 अंगों में स्वाध्याय चौथे स्थान पर है । इस प्रकार अष्टांगयोग साधना के अंतर्गत 05 यम और 03 नियम के अंगों की सिद्धि स्वाध्याय में पहुँचाती है । संसार अनुभव के आधार पर और यम - नियम के अंगों की साधना की सिद्धि पर  साधक की दृष्टि संसार की ओर से वापिस लौटती है , स्व पर । मैं कौन हूँ ? के प्रश्न का उत्तर जब संसार में नहीं मिलता तब संसार के अनुभव के आधार पर साधक अपनें सुसुप्त विवेक को जगाता है जिसे स्वाध्याय कहते हैं । अब देखते हैं , स्वाध्याय के सम्बन्ध में पतंजलि के सूत्र को 👇




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