महर्षि पतंजलि के शब्दों में आतंरिक शौंच क्या है ?

 पिछले अंक में बाह्य शौंच के संबंध में महर्षि पतंजलि को देखा गया और अब देखते हैं , आतंरिक शौंच को।

योग में ऊर्जा बाहर से अंदर की ओर प्रवाहित होती रहती है अर्थात अंतर्मुखी की प्रक्रिया प्रारंभ होती है , यह बात ध्यान में होती चाहिए कि ध्यान एक ऐसा मार्ग है जिसमें पुरुष प्रकृति के बंधनों 【 महाभूत , तन्मात्र , 11 इंद्रियों , अहँकार और महत् ( बुद्धि ) 】से मुक्त होता चला जाताहै ।


और अंततः अपनें मूल स्वरूप को प्राप्त करके कैवल्य को प्राप्त होता है ।

अर्थात

वेदांत

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