संपूर्ण पतंजलि विभूति पाद
पतंजलि समाधि पाद ( 51 सूत्र ) में योग क्या है ? चित्त वृत्तियां हमें किस प्रकार नियंत्रित कर रही हैं तथा चित्त वृत्तियों को सही दिशा में रखने के 08 उपायों को बताया गया है । जब चित्त की वृत्तियाँ निरोधित हो जाती है तब सम्प्रज्ञात समाधि की अनुभूति होती है , समाधि पाद जे आखिरी चरण में इसे भी बताया गया है ।
पतंजलि योगसूत्र के दूसरे पाद - साधन पाद में उन विधियों को बताया गया है जिनके अभ्यास से चित्त की गणित समझते हुए समाधि की अनुभूति संभव होती है । साधन पाद में अष्टांगयोग के 05 अंगों को बताया गया
है । क्रियायोग , पञ्च क्लेष , दुःख , प्रकृति - पुरुष , कृतार्थ और समाधि के संबंध में साधन पाद प्रकाश डालता है ।
साधन पाद के बाद पतंजलि योगसूत्र में तीसरा पाद है - विभूति पाद जिसके 55 सूत्रों को यहाँ दिया जा यह है लेकिन पहले इस पाद के सार को यहाँ निम्न स्लाइड में देखें ⬇️
विभूति पाद सूत्र : 1 , 2 , 3
विभूति पाद सूत्र : 1 धारणा क्या है ?
धारणा अष्टांगयोग का 6 वां अंग है ।
चित्तको किसी देश से बांध देना धारणा है ।
देशका अर्थ है कोई सात्त्विक आलंबन। आलंबन स्थूल या सूक्ष्म हो सकता है । स्थूल आलंबन से साधना प्रारम्भ होती है और स्वतः सूक्ष्म में प्रवेश कर जाती है ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
विभूति पाद सूत्र : 2 ध्यान क्या है ?
ध्यान अष्टांगयोग का सातवां अंग है ।
सूत्र रचना निम्न प्रकार है ⬇️
" तत्र , प्रत्यय , एकतानता , ध्यानम् "
सूत्र शब्दार्थ 👇
उस अर्थात धारणा , प्रत्यय अर्थात आवरण , एकतानता अर्थात लगातार बिना किसी रुकावट , ध्यानम् अर्थात आलंबन से चित्त को बाधना ।
सूत्र भावार्थ ⬇️
बिना किसी अवरोध , धारणा में चित्तका देर तक स्थिर रहना , ध्यान है ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
विभूति पाद सूत्र : 3
अष्टांग योगका आठवां अंग समाधि
सूत्र के शब्द ⬇️
" तत् एव अर्थ मात्र निर्भासं स्वरुपशून्यम् इव समाधि "
ध्यान जब सिद्ध होता है तब ध्यान का आलंबन नाम मात्र रह जाता है अर्थात बीज रूप में रहता है और उस सूक्ष्म आलंबन पर चित्त शून्य हो जाता है ।
सबीज आलंबन के साथ चित्त की शून्यावस्था सबीज समाधि या सम्प्रज्ञात समाधि कहलाती है ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
विभूति पाद सूत्र : 4 - 5 संयम
विभूति पाद सूत्र : 4⬇️
' त्रयं एकत्र संयम '
त्रयं अर्थात धारणा , ध्यान और समाधि
👌 जब धारणा , ध्यान और समाधि एकत्र हो जाय तो उस स्थिति को संयम कहते हैं ।
सूत्र - 4 का भावार्थ
जब धारणा , ध्यान और समाधि की सिद्धियाँ एक साथ घटित हों और साधक को इसका कोई आभाष न हो , वह समयातीत में हो , तब उसकी इस समाधि बाद की स्थिति संयम की होती है ।
संयम सम्प्रज्ञात समाधि - सिद्धि का फल है ।
~~◆◆ ॐ◆◆~~
विभूति पाद सूत्र : 5 प्रज्ञा
' तत् जयात् प्रज्ञा आलोक '
👌 धारणा , ध्यान , समाधि और संयम पर विजय मिलते ही प्रज्ञा आलोकित हो उठती है ।
अर्थात बुद्धि , अहँकार , 11 इंद्रियों , 05 तन्मात्रों और 05 महाभूतों में सात्त्विक गुण की ऊर्जा भर जाती है और शेष दो गुण - राजस और तामस क्षीण हो जाते हैं।
~~◆◆ ॐ◆◆~~
विभूति पाद सूत्र : 6,7,8
संयम ,अष्टांगयोग के अंग , संप्रज्ञात समाधि
सूत्र - 6
" तस्य भूमिषु विनियोगः "
सूत्र का अर्थ ⬇️
' उसका (अर्थात संयम का ) अन्य भूमियों में भी प्रयोग करना चाहिए '
धारणा , ध्यान और संप्रज्ञात समाधि की भूमियों की सिद्धिसे संयम भूमिमें प्रवेश मिलता है । संयम भूमिकी सिद्धि मिलनेके बाद योग साधना की 04 और भूमियाँ शेष रह जाती है ; असंप्रज्ञात समाधि , धर्ममेघ समाधि , कैवल्य और मोक्ष ।
महर्षि सूत्र - 6 में कह रहे हैं कि संयमसे आगे आनेवाली भूमियों में भी इसी तरह बने रहना चाहिए ।
विभूति पाद सूत्र - 7
अष्टांगयोगके प्रारंभिक 05 अंग ( यम , नियम , आसन , प्राणायाम और प्रत्याहार )बाह्य अंग कहलाते हैं और धारणा , ध्यान और समाधि अंतरंग कहलाते हैं ।
सूत्र - 8
निर्बीज समाधि (असम्प्रज्ञात समाधि ) की दृष्टि में
धारणा , ध्यान और सबीज समाधि भी बाह्य अंग हैं । ध्यान रखें कि सबीज समाधि तक अवलंबन रहता है और यह अवलम्बन ही बीज है अर्थात मोक्ष मार्ग का अवरोध होता है ।
~~◆◆ ॐ◆◆~~
विभूति सूत्र : 9
योग साधनामें ऊपर उठना और नीचे गिरना
सूत्र : 9
चित्त के दो धर्मों से सम्बंधित है चित्त के दो धर्म हैं - ब्युत्थान ( नीचे गिरना ) और निरोध ( ऊपर उठना ) /
जब ब्युत्थान दबने लगता है तब निरोध , ऊपर उठने लगता है और जब निरोध दबने लगता है तब ब्युत्थान उठने लगता है ।
अर्थात
👌साधना में राजस - तामस गुणों की वृत्तियाँ जब कमजोर होने लगती हैं तब सात्त्विक गुणकी वृत्तियाँ ऊपर उठने लगती हैं या फिर यह भी कह सकते हैं कि
👌ब्युत्थान संस्कारका जब अभाव होने लगता है तब निरोध संस्कार भरने लगता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र : 10
चित्तमें प्रशांत ऊर्जा भरने लगती है
"तस्य प्रशांत वहिता संस्कारात् "
सूत्र भावार्थ
👉 सूत्र 09 तक की साधना -सिद्धिके उपरांत चित्तमें प्रशांतकी धारा बहने लगती है ।
अर्थात
निरोध संस्कारकी पूर्ण स्थापना हो जाती है ।
चित्तकी यह स्थिति सबीज समाधि से ठीक पहले की स्थिति होती है ।
// ॐ //
विभूति पाद सूत्र - 11 , 12
समाधि परिणाम
चित्तका एकाग्रता परिणाम
जब चित्त एक आलंबन पर स्थिर हो जाय और उस पर देश - काल की पकड़ समाप्त हो जाय तब उस स्थिति को चित्तका एकाग्रता परिणाम कहते हैं । पीछे सूत्र - 10 में चित्त - चंचलता का निरोध करना बताया गया , सूत्र - 11 में चित्तको एक बिषय पर एकाग्र करनेको बताया गया और अब सूत्र - 12 में चित्त - एकाग्रता परिणाम के सम्बन्ध में बता रहे हैं ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 13
भूत - इंद्रिय - धर्म लक्षण
" एतेन भूत इंद्रियेषु धर्म लक्षण अवस्था
परिणामा व्याख्याता "
सूत्र भावार्थ :-
इसी तरह पञ्च महाभूतों और 11 इंद्रियों के
धर्म , लक्षण , अवस्था और परिणामों को समझना लेना चाहिए ।
इस सूत्र में भूत , इन्द्रिय , धर्म , लक्षण , अवस्था और परिणामा ये 06 तत्त्व हैं , पहले इन तत्वों को समझते हैं।
भूत अर्थात पञ्च महाभूत , इन्द्रिय अर्थात 11 इन्द्रियाँ , धर्म अर्थात ऐसे गुण जो सदैव रहते हों , लक्षण अर्थात वे संकेत जिनके आधार पर बस्तु / तत्त्व को समझा जा सके , अवस्था अर्थात उसकी स्थिति और परिणामा का अर्थ है , फल ।
जैसे चित्त के 03 परिणाम हैं वैसे पञ्च महाभूतों और 11 इंद्रियों के भी 03 - 03 परिणाम हैं और उसी तरह इन्हें भी समझना चाहिए ।
निरोध , समाधि और एकाग्रता ये तीन चित्त के परिणामा हैं और ब्युत्थान एवं निरोध 02 चित्तके धर्म हैं। चित्त स्वयं धर्मी कहलाता है जो तीनों कालों ( भूत , वर्तमान और भविष्य ) में रहता है , इस तथ्य को आगे बताया गया है ।
1 - धर्म - परिणाम
धर्मी के एक धर्म का दबना और दूसरे का उभरना , धर्म परिणाम है ।
इसे ऐसे समझें ➡
चित्त के दो धर्म हैं ; व्युत्थान और निरोध । व्युत्थान का दबना और निरोध का ऊपर उठना और वहीँ चित्त का एकाग्र हो जाना , चित्त नामक धर्मी का धर्म - परिणाम है ।
2 - लक्षण परिणाम
2 .1 :- किसी धर्मी के वर्तमान धर्म का लुप्त हो जाना , अतीत लक्षण - परिणाम है ।
2.2 :- नए धर्म का प्रकट होना वर्तमान लक्षण - परिणाम है ।
2.3 :- जो धर्म अभीं होनेवाला है वह भविष्य लक्षण परिणाम है ।
धर्म परिणाम को समय की दृष्टि से देखने पर लक्षण परिणाम समझ में आ सकते हैं ।
3 - अवस्था परिणाम :-
वर्तमान लक्षण परिणाम में जो प्रति क्षण नए से पुराने की अवस्था आती है , वह अवस्था परिणाम है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 14
पहले सूत्र रचना को देखते हैं ⬇️
शांत ( भूत काल , उदित (वर्तमान काल , अव्यपदेश्य ( जिसके बारे में न कहा जा सके अर्थात भविष्य काल )धर्म अनुपाती , धर्मी
विभूति पाद सूत्र - 14 में 06 शब्द हैं - शांत , उदित , अव्ययदेश्य , धर्म अनुपाती और धर्मी ।
धर्म के लिए धर्मी चाहिए जैसेवशक्ति के लिए शक्तिमान चाहिए।
भूत , वर्तमान और भविष्य में जो रहता हो वह धर्मी है और तीन काल ( भूत , वर्तमान और भविष्य ) धर्म हैं ।
योग दर्शन सांख्य दर्शन के धरातल पर स्वयं को स्थापित करता है , इसलिए यहाँ सांख्य के सत्कार्य बाद को अपना रहा है । सत्कार्य बाद अर्थात कारण - कार्य बाद अर्थात हर कार्य में कारण विद्यमान रहता है । बिना धर्मी ,धर्म की कोई सत्ता नहीं ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र : 15
सूत्र रचना निम्न प्रकार है ⬇️
क्रम अन्यत्वम् ( बदलाव ) परिणाम ( फल ) अन्यत्वे ( बदलाव )
सूत्र भावार्थ
क्रममें बदलाव , परिणाम में बदलाव लाता है ।
क्रम क्या है ?
पञ्च महाभूतों की स्थिति में क्रमशः हो रहा परिवर्तन , क्रम कहलाता है ।
चूँकि पञ्च भूतों में क्रम है अतः उनके परिणाम में भिन्नता है ।
//ॐ //
सिद्धियां > सूत्र : 16 से 49 तक कुल 44 सिद्धियां
सिद्धियाँ 👇
सूत्र - 16 संयम - सिद्धि (सिद्धि - 01 )
सूत्र रचना ⬇️
" परिणाम त्रय संयमत् अतीत अनागत ज्ञानं "
सूत्र भावार्थ
किसी पदार्थ के तीनों परिणामों ( धर्म , लक्षण , अवस्था ) पर संयम करने से उस पदार्थ के भूत , वर्तमान और भविष्य का ज्ञान हो जाता है ।
◆ धारणा ध्यान और समाधिकी एक साथ जब सिद्धि मिले तो उसे संयम हैं ।
विभूति पाद सूत्र - 17 सिद्धि - 02
भाषा बोध सिद्धि
सभीं प्राणियों की भाषा को समझने की सिद्धि
एक वस्तुको 03 तत्त्वों से समझा जाता है ; शब्द , अर्थ और प्रत्यय ( ज्ञान )।
जब एक जीव के इन तीन विभागों ( शब्द , अर्थ और ज्ञान ) में कोई भ्रम न हो और तीनों विभागोंकी धारणा - ध्यान - समाधि सिद्धि के बाद संयमकी अवस्था इन चित्त स्थिर हो गया हो तब वह योगी उस जीवकी भाषा को समझ सकता है ।
उदाहरण >
गाय एक जीव है , उसे पूर्ण रूपेण जानने के लिए आवश्यक है कि गाय शब्द को जानें , गाय शब्द जे अर्थ को गहराई से समझें और गाय के सभीं गुणों का बोध ग्रहण करें । जब ऐसा हो जाता है तब गाय की भाषा को समझना स्वतः आजाता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 18 सिद्धि : 03
पिछले जन्मके बारेमें जानना
संस्कार - साक्षात् - करणात् - पूर्व - जाति ज्ञानम्
पहले संस्कारको समझते है ? चित्तकी बहुत गहराई में अंकित सूचनाएं हमारे संस्कार को निर्मित करती हैं , संस्कार ही हमारे जीवनको संचालित करते हैं । अपनें संस्कारों पर धारणा , ध्यान और समाधि ( संयम ) की सिद्धि प्राप्त होने पर अपने संस्कारों से परिचय हो जाता है और संस्कारों की सिद्धि से अपने पूर्व के जन्मों का भी बोध हो जाता है।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 19 सिद्धि - 04
दूसरेके चित्तको पढ़ना
दूसरे के ज्ञान को जानने से उसके चीत्त - स्वभाव को जाना जा सकता है …..
क्रमशः सूत्र - 20
विभूति पाद सूत्र - 20
🐧दूसरेके चित्तके स्वभावको तो जाना जा सकता है पर उसके चीत्तके बिषयों को नहीं जाना जा सकता ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 21सिद्धि : 05
* अंतर्धान होने की सिद्धि *
अपने शरीर स्वरुप पर संयम सिद्धि से दूसरे के लिए स्वयंके शरीर को अंतर्धान करने की सिद्धि मिलती है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 22 सिद्धि : 06
मृत्यु ज्ञान की सिद्धि
सोपक्रम (स + उपक्रम ) अर्थात प्रयाश से मिला कर्म निरूपक्रम ( निः + उपकरण ) अर्थात बिना प्रयाश से मिला कर्म संयम सिद्धि से मृत्यु का ज्ञान होता है ।
इसे ठीक से समझते हैं ...
👉निम्न तीन प्रकार के क्रम ( कर्म ) हैं
1 - संचित 2 - प्रारब्ध 3 - क्रियमाण
पहले और तीसरे को निरूपक्रम कहते हैं और दूसरे को सोपक्रम कहते हैं । जिसका फल जल्दी मिले वह सोप कर्म है और देर से जिसका फल मिले वह निरूप क्रम
है । केवल प्रारब्ध कर्म भोग के लिए मिलता है क्योंकि देह प्राप्ति प्रारब्ध से मिली हुई है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 23 मित्रता
विभूति पाद सूत्र 23 के साध समाधि पाद सूत्र 33 को भी देखना चाहिए ।
विभूति पाद सूत्र : 23 ⬇️
" मित्रतासे बल मिलता है "
समाधि पाद : 33 में बताया गया है कि मित्रता सुखी व्यक्ति के साथ करनी चाहिए ।
नीचे देखिये समाधि पाद सूत्र - 33
विभूति पाद सूत्र - 24 सिद्धि - 07
दूसरे के बल की प्राप्ति की सिद्धि
किसी दूसरे के बल की प्राप्ति , उसके बल पर संयम करने से मिलती है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 25 सिद्धि :08
दिव्य दृष्टि की प्राप्ति
प्रवृत्ति संयम से परदे के पीछे और सुदूर स्थित विषय - बस्तु का बोध होता है । परदे के पीछे को समझें - जैसे पानी के नीचे या किसी दिवार के उस पार की वस्तुओं का बोध होना ।
प्रवृत्ति क्या है ?
पतंजलि समाधि पाद सूत्र - 35 में प्रवृत्ति शब्द का प्रयोग किया गया है । चित्त की वृत्तियों को क्षीण करने के लिए पतंजलि समाधि पाद में 08 उपाय बताये हैं । इन उपायों में उपाय - 2 में प्रवृत्ति शब्द दिखता है ।
एकाग्रता साधना के लिए किसी सात्त्विक आलंबन पर चित्त को एकाग्र करने जा अभ्यास करना चाहिए । इस अभ्यास के फलस्वरूप चित्त का झुकाव उस आलंबन पर हो जाता है । इस झुकाव को प्रवृत्ति कहते हैं ।
चित्त के किसी सात्त्विक आलम्बन भसव बध जाने से चित्त एक निर्मल सात्त्विक ऊर्जा से भर जाता है । इस प्रकिया को प्रवृत्ति कहते हैं ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 26सिद्धि : 09
14 भुवनों का बोध
सूर्य संयमसे 14 भुवनों का बोध होता है ।
//ॐ//
सूत्र - 27+28+29सिद्धि : 10 +11+12
सूत्र - 27 , 28 , 29
चन्द्रमा संयम से तारा मंडलका बोध होता है ,
ध्रुव तारा संयम से तारा मंडल के तारोंकी गतियों का बोध होता है
और स्वयं के नाभि चक्र के संयमसे स्वयं के शरीर के आतंरिक - बाहरी भागों की संरचना का बोध होता है ।
//ॐ//
विभूति पादसूत्र - 30 , 31 , 32
सिद्धियाँ : 13 , 14 और 15
विभूति पाद सूत्र - 30
कंठ कूप संयमसे भूख -प्यास की निवृत्ति होती है ।
विभूति पाद सूत्र - 31
कूर्म नाड़ी संयमसे स्थिरता मिलती है ।
विभूति पाद सूत्र - 32
मूर्धा प्रकाश संयम पर सिद्धों के दर्शन होते हैं ।
# मूर्धा सहस्त्रार चक्र को कहते हैं #
जब बच्चा पैदा होता है तब उसके सिर के उच्चतम भाग पर एक अति कोमल स्थान होता है । उस स्थान पर उंगली रखने से वह स्थान नीचे दबता भी है । यही स्थान मूर्धा है । योग मतानुसार यहाँ एक परम प्रकाश रूप में कोई चेतन शक्ति संचित है।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 33सिद्धि : 16
सर्वस्व का ज्ञान प्राप्ति
प्रतिभा के द्वारा भी सर्वस्व को जाना जा सकता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 34
सिद्धि : 17 > चित्त बोध
हृदय संयमसे चित्तको जाना जा सकता है ।
हृदय संयम अर्थात अनहद चक्र की साधना - सिद्धि की प्राप्ति ।
विभूति पाद सूत्र - 35
प्रकृति और पुरुष
👌प्रकृति और पृरुषको अलग - अलग देखनेवाला चित्त , योग में होता है और दोनों को एक समझनेवाला चित्त भोग में होता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 36
सिद्धि : 18 - 23
पुरुष बोधसे 06 सिद्धियां मिलती हैं
1 - प्रतिभा , 2 - श्रवण , 3 - वेदन , 4 - आदर्श , 5 - आस्वाद , 6 - वार्ता
👌ये सिद्धियाँ क्रमशः निम्न प्रकार हैं …
1- प्रतिभा : दिव्य सूक्षतम् बिषयों के सम्बन्ध में दिव्य देवतओं जैसा ज्ञान मिलता है ।
2 - श्रवण : देवताओं जैसी श्रवण शक्ति मिलती है जिससे शताब्दियों पूर्व ऋषियों द्वारा बोले गए वचन आदि सुनाई पड़ने लगते हैं ।
3 - वेदन : त्वचा की संवेदन शक्ति देवताओं जैसी हो जाती है ।
4 - आदर्श :मृत्यु प्राप्त लोगों की आत्माओं से संपर्क करनें की दृष्टि मिलती है ।
5 - आस्वाद :देवताओं जैसा वस्तु सेवन का स्वाद मिलने लगता है ।
6 - वार्ता : सूंघने की दिव्य शक्ति मिल जाती है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 37
सारी सिद्धियाँ समाधि के अवरोध हैं
सारी सिद्धियाँ समाधि के लिए बाधा हैं ।
ऐसे योगी जिनकी योग - यात्रा सिद्धियों पर आ कर रुक जाती है , वे धीरे - धीरे पतित होते चले जाते हैं ।
श्रीमद्भागवत पुराण - 11.15 में भी सिद्धियों के संबंध में बताया गया है ।
श्रीमद्भागवत पुराण में प्रभु श्री कृष्ण - उद्धव वार्ता स्कन्ध : 11.7 - 11.29 के मध्य 1030 श्लोकों में दी गयी है ।
इस वार्ता में उद्धव जी के 22 प्रश्न हैं । स्कन्ध : 11.15 में कुल 36 श्लोक है । अध्याय के प्रारम्भ में उद्धव अपनें 10 वें प्रश्न में पूछते हैं ,
" कौन सी धारणा करने से कौन सी सिद्धि मिलती है और सिद्धियाँ कितने प्रकार की होती है ?
प्रभु श्री उत्तर में कहते हैं …..
धरणायोग सिद्धि से 18 प्रकार की सिद्धियाँ मिलती हैं । इन 18 सिद्धियों में 08 सिद्धियां हर पल मेरे साथ रहती हैं और जो निम्न हैं ⬇️
1- अणिमा , 2 - महिमा , 3 - लघिमा , 4 - प्राप्ति
5 - प्राकाम्य , 6 - ईशित्व , 7 - वशिता , 8 - कामावसायिका
ओके
विभूति पाद सूत्र - 3
सिद्धि : 24
अपनें चित्त को पर काया में प्रवेश कराना
अविद्याके शिथिल हो जाने से प्रकृति - पुरुष के मूल स्वरूपका बोध हो जाता है और इस प्रकार अपनें चित्तका भी पूर्णरूपेण ज्ञान हो जाता है तथा उसे पर काया में प्रवेश कराया जा सकता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 39
सिद्धि - 25
जल , काटों आदि पर चलने की सिद्धि
उदान वायु संयम से जल पर चलना , काटो पर चलना आदि की सिद्धि मिलती है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 40
सिद्धि : 26
शरीर में चमक पैदा करना
समान वायु संयम से योगी का शरीर चमकने लगता है ।
//ॐ//
विभूति पादसूत्र - 41
सिद्धि : 27
देवताओं जैसी सुनने की शक्ति पाना
शब्द और आकाश के सम्बन्ध पर संयम करने से देवताओं जैसी सुनने की शक्ति मिलती है।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 42
सिद्धि : 28
आकाश में भ्रमण करने की ऊर्जा पाना
शरीर और आकाश के सम्बन्ध - बिषय पर संयम करने से अपनें शरीरको रुई जैसा हल्का बना सकते हैं तथा आकाश में भ्रमण कर सकते हैं ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 43
सिद्धि - 29
महा विदेहा की सिद्धि
सूत्र रचना 👇
बहिः अकल्पिता वृत्ति: महाविदेहा ततः प्रकाश आवरण क्षयः
जब अपनें चित्त को शरीर से बाहर स्थिर करने का अभ्यास सिद्ध हो जाता है तब इसे अकल्पित विदेहा की स्थिति कहते हैं । इसे समझते हैं ⬇️
ऐसी कल्पना करने का अभ्यास करना चाहिए कि मैं देह नहीं हूँ , मैं चित्त नहीं हूँ , बुद्धि , नहीं हूँ , महाभूत नहीं हूँ , तन्मात्र नहीं हूँ अर्थात मैं सभीं 24 तत्त्वों से अलग हूँ। जब कल्पित अभ्यास अकल्पिता में बदल जाता है , तब शुद्ध ज्ञान का बोध हो जाता है और इस सिद्धि से अज्ञानताका क्षय हो जाता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 44
सिद्धि : 30
पञ्च तत्त्वों की सिद्धि
पञ्च तत्त्वों की 05 दशाएं हैं ;
1 - स्थूल , 2 - स्वरुप , 3 - सूक्ष्म , 4 - अन्वय और 5 - अर्थवक्त ।
जब इनके ऊपर संयम सिद्ध जो जाता है तब पञ्च भूतों पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है ।
1 - स्थूल : पञ्च भूतों के स्थूल भौतिक रूपों पर संयम सिद्धि करना ।
2 - स्वरुप : पञ्च भूतों के गुणों पर संयम सिद्धि प्राप्त करना ।
3 - सूक्ष्म : पञ्च भूतों के तन्मात्रों पर संयम सिद्ध करना ।
4 - अन्वय : तीन गुणों पर संयम सिद्ध करना ।
5 - अर्थवक्त : यह सोचना की हमें पञ्च तत्त्व क्यों मिले हुए हैं , इस पर संयम सिद्ध करना ।
उपर्युक्त पञ्च भूतोंकी दशाओं की सिद्धिसे पञ्च भूतों की सिद्धि मिलती है ।
विभूति पाद सूत्र : 45 + 46
सिद्धि : 31से 40 तक
भूतों की दशाओं पर जब संयम किया जाता है तब ⬇️
1 - अणिमा आदि सिद्धियाँ मिलती हैं , 2 - काया संपत्ति मिलती है
3 - पञ्च भूतों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
काया संपत्ति को सूत्र - 46 में बताया गया है …
1 - अणिमा आदि सिद्धियों जे सम्बन्ध नें निम्न स्लाइड देखें जिसे भागवत जे आधार और तैयार किया गया है ⬇️
विभूति पाद सूत्र - 46
सूत्र : 45 का क्रमशः
काया संपत्ति से यह सूत्र सम्बंधित है। कायाके 05 स्वरूपों ( रूप , लावण्य , चमक , बल , वज्र समान मजबूती ) को बताते हुए ऋषि कहते हैं ⤵️
05 महाभूतों के संयम साधना सिद्धि पर ऊपर व्यक्त काया के 05 स्वरूप मिलते हैं ।
//ॐ//
बिभूति पाद सूत्र - 47
सिद्धि - 41
इन्द्रियों पर विजय
इंद्रियोंके स्वरूपों पर संयम करने से उनको जीता जा सकता है ।
इंद्रियों के स्वरूप निम्न हैं ⬇
ग्रहण , स्वरुप , अस्मृता , अन्वय , अर्थवक्त
1 - ग्रहण
इंद्रियों की बिषय - ग्रहण करने की शक्ति को ग्रहण कहते हैं ।
2 -स्वरुप
इंद्रियों के स्वरुप उनके तन्मात्र हैं ।
3 - अस्मिता
इन्द्रियाँ जो करती हैं उनके पीछे सूक्ष्म मैं का भाव रहता है , उसे अस्मिता कहते हैं ।
4 - अन्वय
अन्वयका अर्थ है , पीछे चलना । जितने भी कर्म होते हैं उनके होने के कारण इंद्रियाँ नहीं , तीन गुण होते हैं ।
5 - अर्थवक्त
इंद्रियों का रुख जब बाहर बिषयों की ओर होता है तब वे भोग आसक्ति में डूबती होती हैं और जब अंदर गमन करती हैं तब उनका रुख मोक्ष की ओर होता है ।
//ॐ//
विभूति सूत्र - 48
सिद्धि - 42,43 , 44
इन्द्रिय जय से 03 सिद्धियाँ मिलती हैं
निम्न सिद्धियाँ मिलती हैं ⬇️
1 - मनकी गति से शरीर को चलाने की सिद्धि मिलती है ।
2 - विकिरण भाव : इंद्रियोंको दूर देश तक भेजा जा सकता है ।
3 - प्रधान जय : प्रकृति पर पूर्ण नियंत्रण करने की शक्ति मिलती है।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 49
सिद्धि : 45
पञ्च भूतों पर नियंत्रण
सत्त्व ( बुद्धि ) और पुरुष दोनों अलग -अलग हैं , ऐसा बोध होने से संपूर्ण भूतों पर नियंत्रण की शक्ति और सर्वज्ञ की स्थिति मिल जाती है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 50
पूर्ण वैराग्य
अब तक की साधना से जो भी प्राप्त हुआ हो , उन सबसे वैराग्य हो जान , पूर्ण वैराग्य है ।
वैराग्य दो प्रकार का है ⬇️
अपर और पर वैराग्य। अपर में बिषयों से विरक्ति हो जाती है और पर में तृष्णा निर्मूल हो जाती है ।
पर बैराग्य की स्थिति कैवल्य का द्वार है और
चित्त की पूर्ण रिक्तता ही कैवल्य है ।
ध्यान रखें !
सबीज ( सम्प्रज्ञात समाधि ) समाधि तक राजस - तामस गुणों से मुक्ति मिलती है पर सात्त्विक गुण का अवलंबन बना रहता है । निर्बीज समाधि अर्थात कैवल्य में सात्त्विक गुण का आलंबन भी समाप्त हो जाता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 51
योगी का पतन
सिद्ध योगी की ख्याति वायु की भांति फैलने लगती है । बड़े - बड़े संपन्न लोगों द्वारा ऐसे योगी बार - बार आमंत्रित किये जाने लगते हैं । इस प्रकार ऐसे योगी धीरे -धीरे भोग साधनों से आसक्त होने लगते हैं और उनके अंदर अहँकार उठने लगता है और इस तरह वे पतित होने लगते हैं , फलस्वरूप योग साधना खण्डित हो जाती है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 52
विवेक ज्ञान प्राप्ति
🕉️ काल की सबसे छोटी इकाई क्षण पर संयम करने से विवेक ज्ञान - प्राप्ति होती है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 53
विवेक ज्ञानकी परिभाषा
💐 जाति , लक्षण और देश के आधार पर जिनको न जाना जा सके , उन्हें विवेक ज्ञान से जाना जा सकता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 54
विवेक ज्ञानकी प्राप्ति , कैसे होती है ?
👌असम्प्रज्ञात समाधिमें विवेक जन्य ज्ञान मिलता है ।
👍 यह ज्ञान कैवल्य ( गुणातीत ) में पहुंचाता है ।
//ॐ//
विभूति पाद सूत्र - 55
अविद्या , प्रकृति ,पृरुष संबंध
👉प्रकृति - पुरुष पृथक - पृथक हैं लेकिन अविद्याके कारण एक दूसरे से मिले हुए से भाषते हैं ।
👉दोनों अलग - अलग हैं , ऐसी सोच निर्मल और शांत बुद्धि में उपजती है ।
👌 जब प्रकृति - पुरुष का
पृथक - पृथक होने का बोध होता है तब वह योगी कैवल्य में होता है ।
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