ईशोपनिषद् का सूत्र - 01
ईशोपनिषद् श्लोक :01
ईशोपनिषद् में कुल 18 श्लोक हैं । उपनिषदोंके ऋषि ज्ञेयसे अज्ञेय , प्रकृतिसे पुरुष , दृश्य वर्गसे अदृश्य और साकारसे निराकार ब्रह्मकी अनुभूति कराने हेतु वेदोंके सार तत्त्बोंसे उपनिषदोंका निर्माण किये ।
ईसोपनिषद् के पहले श्लोक में ऋषि भोग में लिप्त मनुष्य को जगानेके लिए कह रहे हैं - " तेन त्यक्तेन भुञ्जिथा … "
भोगसे योग , योग में ब्रह्मकी अनुभूतिके किये ईशोपनिषद् का यह मंत्रांश पर्याप्त है ।
ऋषि कह रहे हैं , " भोगों , खूब भोगों पर भोगकाल में भोग - त्यागकी सोचको बनाये रखना , क्योंकि भोगत्याग के बिना तुम अपनें मूल स्वाभावसे दूर ही रहोगे ।।ॐ ।।
श्लोक : 1 का सार
सर्व व्याप्त प्रभु हैं / भोग में भोग त्याग की सोच उपजनी चाहिए और पराये धन पर दृष्टि केंद्रित नहीं होनी चाहिए ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~ 11 अक्टूबर
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