ईशोपनिषद् श्लोक - 4
ईशोपनिषद् श्लोक :04
श्लोक : 4 का सार
# ब्रह्म स्थिर भी है और मनसे भी अधिक तीब्र
गतिमान भी है ।
# उससे उपजी वायु कर्म करने की ऊर्जा देता है ।
यहाँ गीता के निम्न सूत्रों को भी देखें⬇️
◆ तीन गुण प्रभु से हैं लेकिन प्रभु गुणातीत हैं और गुणों के भावों में प्रभु नहीं होते ।
◆ कर्म करता गुण हैं और करता भाव अहँकार की उपज है ( गीता : 3.5 , 3.27 , 2.28 , 14.10 )।
◆ क्रियायोग में पूरक , कुम्भक और रेचक माध्यसे राजस - तामस गुणों को शांत किया जाता है और सात्त्विक गुण को ऊपर उठाया जाता है ।
◆ जब एक गुण प्रभावी रहता है तब अन्य दो शांत रहते हैं । एक गुण अन्य दो को दबा कर ऊपर उठता है ।
● जो गुण प्रभावी होता है , उसके अनुसार कर्म होता है ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~21 अक्टूबर
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