ईशोपनिषद् श्लोक 5 - 6
ईशोपनिषद् श्लोक : 5 और 6
वह ( ब्रह्म ) गतिशील और स्थिर भी है ।
वह ( ब्रह्म ) दूर और समीप भी है ।
वह ( ब्रह्म ) सबके अंदर और बाहर भी है ।
वह ( ब्रह्म ) द्वेष रहित है ...
वह ( ब्रह्म )सभीं जीवों को देख रहा है ..
वह ( ब्रह्म )वह स्वयं में स्थित और सभीं जीवों में स्थित है ।
श्लोक : 5 - 6 का सार
◆ ब्रह्म सर्वत्र है , सबके अंदर - बाहर है और सबमें समान रूपसे है ।
◆ ब्रह्म सबको देख रहा है , स्वयं में और सभीं जीवों में स्थित है ।
◆ ब्रह्म द्वेष रहित है , अब आगे ⤵️
यहाँ गीता श्लोक - 13 . 15 को देखिए 👇
● वह ( ब्रह्म )चर -अचर है ।
● वह (ब्रह्म ) सबके बाहर ,भीतर , दूर और समीप भी है ।
● वह ( ब्रह्म् )अति सूक्ष्म होने होने से अविज्ञेय है ।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~22 अक्टूबर
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