गीता अमृत - 19


गीता श्लोक - 7.27

श्लोक कहता है - इच्छा , द्वेष , द्वन्द एवं मोह से प्रभावित ब्यक्ति अज्ञानी होते हैं और गीता श्लोक - 5.10 - 5.11कहते हैं -- क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ , भोग - योग , भोगी - योगी को न समझनें वाले लोग अज्ञानी होते हैं .....अब आप इन चार गीता सूत्रों पर अपनी बुद्धि को जितना चाहें उतना लगाएं - जितनी गहरी सोच होगी उतनी गहरी बात सामनें आएगी ।
गीता सूत्र - 7.27 में इच्छा , द्वेष एवं द्वन्द अहंकार - राजस गुण के समीकरण के तत्त्व हैं और मोह है - तामस गुण का मूल तत्त्व । गीता सूत्र - 6.27, 2.52 को जब आप एक साथ देखेंगे तो आप को पता चलेगा --
राजस - तामस गुण प्रभु के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट हैं । गीता ज्ञान की परिभाषा गीता सूत्र - 13.2 में देते हुए कहता है - वह जो क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध पैदा करे - ज्ञान है और गीता आगे यह भी कहता है --
कामना - मोह [ राजस गुण - तामस गुण ] अज्ञान की जननी हैं [ गीता - 7.20, 18.72 - 18.73 ] , अब आप गीता के विज्ञान को समझें की गीता आप को किधर ले जाना चाह रहा है ?
इच्छा [ कामना ] , द्वेष , द्वन्द में राजस गुण में अहंकार ऊपर परिधि पर होनें से दिखता है और मोह में तामस गुण के साथ अहंकार अन्दर होनें के कारण नहीं दिखता ।
गीता एक मार्ग है जो भोग से योग में पहुंचाता है , जो भोग तत्वों के प्रति होश उठा कर बैराग्य में पहुंचता है , जो गुणों के बंधन को ढीला करके संन्यास में पहुंचाकर कहता है -----
अब तूं देख की .......
आत्मा क्या है ?
प्रभु में कौन सा आनंद है ?
संसार क्या है ? और ----
प्रकृति - पुरुष के योग वाला , तूं कौन है ?

=====ॐ=====

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