गीता अमृत - 15

पंडित की परिभाषा , गीता में क्या है ? -----गीता ..4.19

गीता श्लोक 4.19 कहता है ......
कामना संकल्प रहित कर्म करता जो ज्ञान से परिपूर्ण हो , वह पंडित है ।
गीता सूत्र 4.18 में हमनें देखा - जो कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखता हो , वह बुद्धिमान तथा योगी होता है और इस बात को एक नए अंदाज में गीता सूत्र 4.19 कह रहा है । गीता का हर एक सूत्र दुसरे सूत्र का प्रारंभ है , एक सूत्र पर जो रुक गया , वह रुक गया और जो एक बात से सम्बंधित सभी सूत्रों को इकट्ठा करके माला बना कर धारण करता है , वह है - गीता - योगी ।
आइये ! अब गीता के कुछ और सूत्रों को देखते हैं ------
[क] सूत्र - 2.11
प्रज्ञावान सम भाव वाला , पंडित होता है ।
[ख] सूत्र - 18.42
सम भाव वाला , ब्रह्मण होता है ।
[ग] सूत्र - 2.46
ब्रह्म को तत्त्व से जाननें वाला , ब्रह्मण होता है ।
[घ] सूत्र - 2.55 - 2.72
समभाव वाला , संकल्प - कामना, अहंकार रहित गुण - तत्वों के प्रभाव में न आनें वाला , स्थिर बुद्धि वाला होता है ।
[च ] सूत्र - 6.1 - 6.2, 6.४
संकल्प - कामना रहित योगी होता है ।
[छ] सूत्र - 3.17 - 3.18
आत्मा केन्द्रित ब्यक्ति का समंध सब के साथ निःस्वार्थ होता है तथा ऐसे योगी को कर्म तत्त्व नहीं पकड़ पाते

गीता एक ब्यक्ति को स्पष्ट करनें के लिए स्थिर - प्रज्ञा वाला , स्थिर मन वाला , पंडित , ब्राह्मण , समभाव वाला , गुनातीत तथा अन्य अनेक शब्दों का प्रयोग करता है और सब का केवल एक भाव है -----
गुणों के बंधनों से जो मुक्त है , वह है --योगी जो परमात्मा से परिपूर्ण होता है ।

आइये ! आप को गीता बुला रहा है , आप गीता से परमानंद का आनंद लें --
प्रभु आप के साथ हैं ।

=====ॐ=====

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