गीता अमृत - 16

गीता श्लोक - 4.21 - 4.23 तक

यहाँ गीता कह रहा है -------
आसक्ति , कामना रहित , सिद्धि - असिद्धि में सम भाव रहनें वाला , भोग - तत्वों से अप्रभावित ब्यक्ति ,
कर्म - योगी होता है ।
गीता की इस बात को समझनें के लिए हमें गीता में आसक्ति , कामना , भोग तत्वों एवं समभाव को समझना पडेगा । यहाँ गीता के 50 श्लोकों को दिया जा रहा है जिनसे भोग - तत्वों के प्रति कुछ बातें जानी जा सकती हैं ।
[क] आसक्ति के लिए देखिये गीता - सूत्र- 2.48 , 2.59, 2.60, 2.62, 3.7, 3.19 - 3.20, 3.25,3.26, 4.20, 4.23, 5.10, 5.11, 13.8, 14.7, 18.6, 18.11, 18.40 - 18.50, 18.54 - 18.55
[ख] कामना के लिए देखिये गीता सूत्र - 2.55, 2.71, 4.10, 4.19, 6.2, 6.4, 6.24, 7.20, 7.27, 14.7, 14.12
[ग] क्रोध के लिए देखिये गीता सूत्र - 2.62 - 2.63, 4.10, 5.23, 5.26, 16.21
[घ] मोह के लिए देखिये गीता सूत्र - 2.52, 2.71, 4.10, 4.23, 7.27, 18.8, 14.17, 18.72 - 18.73
जब आप गीता के इन सूत्रों को अपनाएंगे तब आप को पता चलेगा --गीता का कर्म - योगी कैसा होता है ?
कर्म - योगी वह है जो ---
काम , आसक्ति , कामना , संकल्प , बिकल्प , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार से अप्रभावित रहता है ।
राजस - तामस गुणों के तत्वों की छाया जिसके कर्मों में न पड़े , वह है - गीता का कर्म - योगी

====ॐ=====

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