गीता अमृत - 37
सोच एक यात्रा है [क] सोच से सुख , दुःख , चिंता , स्वर्ग , नरक - सब मिल सकता है लेकीन ------ [ख] परम आनंद , परम धाम नहीं मिलता । [ग] सोच के सुख में दुःख का बीज होता है । [घ] यात्रा वह है ... जिसका प्रारम्भ तो होता है लेकीन ------- [च] जिसका अंत अनंत होता है , यदि अंत भी आजाये तो वह यात्रा नहीं रह पाती । आइये अब हम गीता की परम यात्रा में चलते हैं जो हमें आगे - आगे ले जाती है लेकीन जिसमें कोई ऐसी सोच नहीं उपजती जो यह कहे की तुम कहाँ जा रहे हो ? सोच एक ऊर्जा है जो स्वर्ग - नरक में पहुचाती है और हमारे अगले जन्म को भी निर्धारित करती है । गीता सूत्र - 8.6 एवं 15।8 कहते हैं --- यदि तेरी सोच बहुत गहरी होगी तो तेरे को वह सोच यथा उचित अगली योनी में ले जा सकती है जिसमें तुम जाना नहीं चाहते --- सोच के बारे में भी सोच का होना जरुरी है । गीता कहता है --- सात्विक गुणों की सोच स्वर्ग में पहुंचा सकती है जो भोग का एक माध्यम है और यह सोच मनुष्य योनी में पुनः जन्म दिला कर योग मार्ग पर चला सकती है । राजस गुण के लोग नरक में जा सकते हैं या भोगी कुल में पैदा हो कर अपनी भोग की यात्रा को आगे चला सकते