सांख्यकारिका 53 - 54
💐 सांख्यकारिका : 53 - 54
यहाँ आप निम्न को समझ सकते हैं 👇
👉 14 प्रकारकी लिङ्ग सृष्टि
👉 सृष्टि और प्रकृति के 03 गुणों का आपसी संबंध
👌 ऊपर दिए गए बिषयों को समझने के लिए निम्न बातों को भी समझना होगा 👇
🐧 सृष्टि प्रकृति मूलक है । प्रकृति की ऐसी कोई रचना नहीं जो प्रकृति के 03 गुणों से अछूती हो । प्रकृति मूलतः निष्क्रिय और जड़ है । तीन गुणों की साम्यावस्था को ही सांख्य और पतंजलि योग सूत्र मूल प्रकृति की संज्ञा देते हैं और वेदांत इसे माया कहता है ।
🐧 मूल प्रकृति जड़ और निष्क्रिय होते हुए भी प्रसवधर्मी होती है । जब यह पुरुष ऊर्जा से प्रभावित होती है तब सक्रिय हो उठती है और विकृति हो जाती है । विकृति के फलस्वरूप पहले बुद्धि उत्पन्न होती है । बुद्धि पहली सृष्टि है । विस्तार से देखने के लिए कारिका : 3 , 21 , 22 और 23 को देखें।
👌पूरे ब्रह्मांड में ऐसी कोई सूचना नहीं जो गुणों द्वारा संचालित न हो। हम सब जो भी करते हैं , जो भी सोचते हैं - सब गुणों की ऊर्जा के कारण होता है । हर सूचना के अंदर 03 गुणों की एक मिश्रित ऊर्जा होती है जो हर पल बदल रही है । जैसे थर्मा मीटर में ऊष्मा के आधार पर पारा ऊपर उठता और नीचे आता रहता है थीक उसी तरफ हम सबके अंदर 03 गुणों की स्थिति है । जब एक गुण ऊपर उठता है तब अन्य दो गुण नीचे होते हैं अर्थात जब एक गुण प्रभावी होता है तब अन्य दो गुण अप्रभावी रहते हैं । जो गुण जिस पल ऊपर होता है हम वैसी सोच रखते है और वैसा कर्म करते हैं । जैसा कर्म हम करते हैं , वैसा फल हमें सुख - दुःख के रूप में मिलता रहता हैं। वेद इस कर्म और गुण समीकरण को गुण विभाग और कर्म विभाग की संज्ञा देते हैं।
💐 वेदांत में 03 गुण जीवात्मा को देह के साथ बाध कर रखते है। (देखिये गीता : 14.5 ) /
👌आखिरी श्वास भरते समय मनुष्य क्यों छटपटाता है ? यही तीन गुणों की रस्सियों में बधा जीवात्मा उस समय मुक्त होना चाहता है।
💐इस प्रकारकी दार्शनिक चर्चा आगे भी होती रहेगी , अब आप कारिका : 53 - 54 सम्बंधित स्लाइड्स को देखें 👇
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