आप को इस प्रश्न के लिए गीता के 27 श्लोकों का सारांश देखना है जिसको यहाँ दिया जा रहा है । गीता को भय के साथ न उठायें , यह तो आप का मित्र है । मित्र वह होता है जो बाहर - अंदर दोनों चहरे को देखनें में सक्षम होता है । गीता-श्लोक 7.3 कहता है ------- सदियों के बाद कोई एक सिद्ध - योगी हो पाता है और हजारों सिद्ध - योगियों में कोई एक परमात्मा तुल्य योगी होता है । श्री कृष्ण यह बात अर्जुन के प्रश्न - 7 के सन्दर्भ में कह रहे हैं और प्रश्न कुछ इस प्रकार है ........ अनियमित लेकिन श्रद्धावान योगी का योग जब खंडित हो जाता है तथा उसका अंत हो जाता है तब उसकी गति कैसी होती है ? परम से परिपूर्ण बुद्ध को खोजना नहीं पड़ता , उनको खोजनें लायक होना पड़ता है । हम-आप बुद्ध को क्या खोजेंगे ? , वे संसार में भ्रमण करते ही इस लिए हैं की कोई ऐसा मिले जो उनके ज्ञान - प्रकाश को लोगों तक पहुंचा सके । दक्षिण के पल्लव राजाओं के घरानें का राजकुमार पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व कोच्ची से चीन मात्र इसलिए पहुँचा की वह बुद्ध - ज्ञान की ज्योति को उस ब्यक्ति को दे सके जो इस काम के लिए जन्मा है । इस महान योगी को लोग बोधी धर्म का नाम द...
गीता श्लोक - 13.22 उपद्रष्टा अनुमन्ता च भार्ता भोक्ता महेश्वरः / परमात्मा इति च अपि उक्तः देहे अस्मिन् पुरुषः परः // " अस्मिन देहे पुरुषः परः , उपद्रष्टा , अनुमन्ता , भर्ता , भोक्ता , महेश्वर च परमात्मा इति उक्तः " " इस देह में पुरुष परम है , उपद्रष्टा है , यथार्थ सम्मति देनेवाला है [ अनुमन्ता ] , धारण- पोषण कर्ता है [ भर्ता ] , भोगनें वाला है , महेश्वर है और उसे परमात्मा कहा जाता है " यहाँ इस सूत्र के साथ आप गीता के निम्न सूत्रों कोभी देख सकते हैं :----- 10.20 , 13.29 , 13.32 , 15.7 ,15.9 , 15.11 , उपद्रष्टा शब्द ध्यान की दृष्टि से अपनी अलग जगह रहता है ; द्रष्टा वह होता है जो यह समझता है कि मैं देख रहा हूँ , यहाँ देखनें के साथ मैं का भाव होता है और उपद्रष्टा में मैं की अनुपस्थिति होती है और भाव रहित स्थिति में द्रष्टा दृष्य पर केंद्रित रहता है / देखनें का काम है आँखों का और आँखों को जो ज्योति देखनें को मिलती है वह देह में स्थित उप द्रष्टा से मिलती है / देह में दृष्य को देखनें वाला मूलतः मन है , मन गुणों का गुलाम होता है , जो गुण मन पर भा...
पतंजलि योग दर्शन में समाधि क्या है ? भाग : 01 ( संप्रज्ञात समाधि ) महर्षि पतंजलि अपनें योग दर्शन में निम्न प्रकार की समाधियों की चर्चा करते हैं ⬇️ # संप्रज्ञात समाधि #असंप्रज्ञात समाधि # धर्ममेघ समाधि संप्रज्ञात समाधि के संदर्भ में सवितर्क - निर्वितर्क एवं सविचार - निर्विचार समापत्तियों की भी चर्चा करते हैं । अब हम ऊपर व्यक्त 03 प्रकार की समाधियों और 04 प्रकार की समापत्तियोंं को समझते हैं । संप्रज्ञात समाधि क्या है ? पतंजलि योग दर्शन के साधन पाद में अष्टांगयोग साधना की चर्चा की गई है । यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान और समाधि अष्टांगयोग के 08 अंग हैं । यहां समाधि शब्द संप्रज्ञात समाधि के लिए प्रयोग किया गया है जो आलंबन आधारित होती है और जिसे सबीज या साकार समाधि भी कहते हैं । संप्रज्ञात समाधि को समझने से पूर्व धारणा और ध्यान को समझना चाहिए । धारणा अष्टांगयोग का 6 वां अंग है धारणा । चित्तको किसी देश ( सात्त्विक आलंबन ) से बांध देना धारणा है (पतंजलि साधनपाद सूत्र - 1 ) " तत्र , प्रत्यय , एकतानता , ध्यानम् " ध्यान में चित्...
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