योग क्या है भाग - 16 भक्तियोग - 8

 अपार भक्ति जब सिद्ध होती है तब परा भक्ति का द्वार स्वतः खुल जाता है ।

लेकिन जब परा भक्ति में ऊपर की यात्रा में अवरोध खड़े होने लगते हैं और भक्त जहाँ होता है , वहाँ से नीचे की चित्त भूमियों पर सरक आने पर बेसहारा की अनुभूति से गुजरने लगता है तब भक्त की दर्द की लहरें इतनी प्रवल हो जाती है कि वे उसके इष्ट देव ( पिछले जन्म के साधन गुरु ) को छूने लगाती हैं । 

इष्ट गुरु जहाँ भी होता है , वहाँ से चल पड़ता है , शिष्य की मदद करने हेतु।

देखिये इस स्लाइड में परमहंस रामकृष्ण जी और अवधूत त्रैलंग स्वामी जी के उदहारण। त्रैलंग स्वामी के लिए भागिरथानंद पटियाला से और परमहंस के लिए तोतापुरी लाहौर से क्रमशः तेलंगाना और दक्षिणेश्वर पश्चिमी बंगाल कैसे आ पहुँचे ?



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