कामना क्रोध एवं अहंकार भाग एक

आसक्ति , कामना एवं क्रोध

गीता कहता है-----

गुणों के प्रभाव में इन्द्रियाँ अपनें - अपने विषयों को खोजती रहती है , जब बिषय मिल जाता है तब मन में उस विषय की प्राप्ति की लहर उठती है जिसको मनन कहते हैं कहते हैं , मनन की सघनता उस उर्जा को आसक्ति में बदल देती है , सघन आसक्ति को कामना कहते है , कामना पूर्ति में जब बिघ्न पड़ता है तब कामना की उर्जा क्रोध में बदल जाती है , इस सूत्र को इस प्रकार से देखें --------

इंद्रिय + बिषय = मन में मनन

सघन मनन=कामना

कामना की असफलता से क्रोध

और गीता सूत्र 3.37 कहता है … .....

काम एषः क्रोध एषः रजोगुणसमुद्भव :

अर्थात काम का रूपांतरण ही क्रोध है और काम – क्रोध राजस गुण के तत्त्व हैं

गीता सूत्र – 7.4 में प्रभु कहा रहे हैं ------

भूमिरापः अनिलः वायु : खं मनः बुद्धिः एव च

अहंकारह इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा

अर्थात

अहंकार अपरा प्रकृति के आठ तत्त्वों में से एक तत्त्व है/

प्रारम्भ में जो समीकरण आसक्ति , कामना एवं क्रोध के सम्बन्ध में दिया गया है उसके सम्बन्ध में गीता के निम्न सूत्रों को देखें ---------

गीता सूत्र – 2.62

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते

संगात्सज्जायते कामः कामत्क्रोधः अभिजायते

गीता सूत्र – 2.63

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धि नाशात् प्रणश्यति


कामना के सम्बन्ध में कुछ और बाते देखें अगले अंक में ---------



===== ओम् ======


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