आत्मा रहस्य का अगला अंश
गीता सूत्र –2.25
अब्यक्तःअयं अचिंत्य : अयं अ विकार्य : अयं उच्यते /
तस्मादेवं विदित्वैनम् नानुशोचि महर्सि //
आत्मा अब्यक्त है [ unmanifest ]
आत्मा अविकार्य [ अपरिवर्तनीय ] है [ unchanging ]
आत्मा अचिंत्य है [ unthinkable ]
गीता सूत्र –2.28
अब्यक्त आदिनि भूतानि ब्यक्तमध्यानि भारत /
अब्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना //
सभीं भूतों काआदि अब्यक्तसे है
The beginning of all being is from unmanifest
सबकाअंत अब्यकमें होता है
And all are ending in unmanifest
सबका वर्तमान केवल ब्यक्त है , फिर जो समाप्त हो रहे हैं उनके लिए क्या सोचना ?
गीता के श्री कृष्ण,सांख्य – योगी कह रहे हैं------
हे अर्जुन ! आर्त्मा अब्यक्त है , अचिंत्य है . अपरिवर्तनीय है / अपरिवर्तनीय की बात तो हम सबकी बुद्धि पकड़ पाती है लेकिनअब्यक्त एवं अचिंत्य को बुद्धि कैसे समझे ? भगवान श्री कृष्ण आत्मा को अब्यक्त एवं अचिंत्य कह रहे हैं और उसे ब्यक्त भी कर रहे हैं और जो अचिंत्य है उसके सम्बन्ध में कह रहे हैं की तूं उसे समझ , क्या अर्जुन के लिए यह संभव है ; ऐसे अर्जुन के लिए जो अभी - अभीं मोह के दलदल में गिरा है ? आत्मा के माध्यम से परमात्मा का बोध ज्ञान है जो वैराज्ञ का फल हैजहां कामना , क्रोध लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार की छाया तक नहीं पड़ती लेकिन प्रभु अर्जुन को आत्मा का ज्ञान दे रहे हैं , उस अर्जुन को जो पूर्ण रूप से मोह में डूबा है , क्या अर्जुन आत्मा को समझ सकेगा ? इस सम्बन्ध में आप सोचें /
====ओम्======
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