गीता तत्त्वम् दो
गीता के मूल तत्त्व
पिछले अंक में गीता के मूल तत्त्वों के नामों से आप का परिचय हुआ और अब देखते हैं गीता के मूल तत्त्व पुरुष , परमात्मा एवं ब्रह्म संज्ञाओं से जिसकी ओर गीता इशारा करता है /
पुरुष,परमात्मा एवं ब्रह्म
गीता में कुल 700 [ 701] श्लोक हैं [ अध्याय – 13 के प्रारंभिक श्लोक के साथ कुल 701 श्लोक हैं ] जिनमें 574 श्लोक प्रभु श्री कृष्ण के हैं जिनका सम्बन्ध सीधे अर्जुन के प्रश्नों के उत्तरों से है / प्रभु के 574 श्लोकों में लगभग 80 श्लिक ऐसे हैं जीके माध्याम से प्रभु स्वयं को एवं साकार – निराकार परमात्मा को ब्यक्त किया है /
प्राकृति एवं पुरुष ये दो तत्त्व हैं सांख्य – योग के , जिनको माया एवं ब्रह्म के रूप में देखा जा सकता
है / गीता में सांख्य , न्याय , मिमांश , वेदान्त , वैशेषिका सब कुछ है और सब कुछ होनें से पढनें वाला भ्रमित भी होता है अतः गीता की यात्रा में होश को बनाए रखना ही गीता - ध्यान है / आइये देखते हैं गीता के कुछ सूत्रों को जिनके माध्यम से प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं --------
गीता श्लोक –10.11 , 10.20 , 13.18 , 15.15 , 15.17
प्रभु कह रहे हैं , मैं सभीं प्राणियों के ह्रदय में स्थित हूँ , मुझसे ही स्मृति - विस्मृति हैं /
गीता श्लोक –7.8 , 7.9 , 9.16 , 9.19 , 10.21 , 15.12
यहाँ प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं , अग्नि , अग्नि की तपस , सूर्य , चन्द्रमा तथा इनके प्रकाश एवं तेज , मैं हूँ /
गीता श्लोक – 7.12
यहाँ प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं , तीन गुणों के भाव मुझसे हैं लेकिन मैं गुणातीत हूँ /
गीता श्लोक –7.13
यहाँ प्रभु कह रहे हैं , गुणों का गुलाम मुझ गुणातीत को नहीं समझता /
गीता की कुछ बातों को यहाँ आप के लिए दिया जा रहा है,यदि आप गीता में रूचि रखते हैं आप मेरी बातों में न उलझ कर सीधे गीता में तैरिये,गीता की ओर इशारा करना मेरा धर्म है//
==== ओम्========
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