गीता के मूल तत्त्व आत्मा
गीता सूत्र –2.23
नैनं छिन्तंदि शस्त्राणि नैनं दहति पावकः/
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः/ /
गीता सूत्र –2.24
अच्छेद्य:अयं अदाह्यः अयं अक्लेद्यःअशोष्य एव च/
नित्यः सर्वगतः स्थारुणुर चलोऽयम सनातनः//
गीता के दो सूत्र कह रहे हैं--------
वह जो शस्त्रों से खंडित न हो सके [ One which cant be cleaved by weapons ]
वह जो अग्नि से जलाया न जा सके [ To which fire does not burn ]
वह जो जल से भींगता न हो [ To which waters do not wet ]
वह जिसको वायु सुखा नहीं सकती [ One which is not dried by air ]
वह जो टूट न सके [ One which is unbreakable ]
वह जो अदाह्य हो [ One which is unburnt ]
वह जो अक्लेद्य हो [ One which could not be dessolved ]
वह जो अपरिवर्तनीय हो [ One which does not change with time ]
वह जो अचल हो [ Immovable ]
वह जो सनातन हो [ One which is indestructible ]
वह जो नित्य हो [ One which is always ]
वह जो सर्वत्र हो [ One which is everywhere ]
गीता में प्रभु अर्जुन को कुछ ऎसी बातें इन दो सूत्रों के माध्यम से बता रहे है जिनके आधार पर अर्जुन आत्मा रहस्य में झाँक सकें लेकिन मोह में डूबे अर्जुन के लिए आत्मा - ज्ञान वह भी गीता के प्रारभ में देना कितना सार्थक होगा , गीता में हम आगे चल कर देखेंगे , अभी आत्मा में हम भी झाँकने का यत्न करते हैं //
=====ओम्========
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