आत्मा और देह


गीता श्लोक –13.32


यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते


सर्वत्रावस्थितो देहे तथा आत्मा नोपलिप्यते


आकाश सर्वत्र है , शूक्ष्म है और किसी से लिप्त नहीं ठीक आकाश की भांति आत्मा देह में सर्वत्र है , शूक्ष्म है और देह के किसी भी भाग से लिप्त नहीं है /


गीता श्लोक –13.33


यथा प्रकाशयत्येक:कृत्स्नं लोकमिमं रवि:


क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत


जैसे सम्पूर्ण लोकों को एक सूर्य प्रकाशित करता है वैसे देह में देही [ आत्मा ] सम्पूर्ण देह को ऊर्जा प्रदान करता है /


आत्मा और आकाश


आत्मा और सूर्य


ऊपर गीता के दो सूत्रों में आत्मा को प्रभु श्री कृष्ण आकाश एवं सूर्य से तुलना कर रहे हैं , प्रभु कह रहे हैं , आकाश सर्वत्र है , सीमारहित है / यह नहीं कहा जा सकता की आकाश है और यह भी नहीं कहा जा सकता की यह नहीं है अर्थात आकाश के होनें के सन्दर्भ में कोई समीकरण नहीं दिया जा सकता और यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह नहीं है / आत्मा के लिए प्रभुश्लोक – 10.20 में कहते हैं , आत्मा रूप में मैं सभीं भूतों के ह्रदय में बसा हुआ हूँ और श्लोक – 13.32 , 13.33 में कह रहे हैं , आत्मा देह में सर्वत्र है और देह के प्रत्येक कोशिका के ऊर्जा का श्रोत भी है / गीता श्लोक – 13.33 में प्रकाश का अर्थ है उर्जा / श्लोक – 13.33 कह रहा है , सभीं लोकों में प्रकाश [ उर्जा ] का श्रोत एक सूर्य है अर्थात सभीं लोक उस क्षेत्र में फैले हुए है जहां तक सूर्य की किरणे पहुंचती है / विज्ञान को इस बात पर शोध करना चाहिए और अन्य लोकों को खोजना भी चाहिए /


The above two verses of Gita said ----


The Supreme Soul within the physical body is centered at the heart but it is always radiating its energy through out the body , it is immutable and all the components of the body get life energy from it . The Supreme Soul within the body is like sky , it is everywhere but it is not confined by anyone .




===== ओम्=======


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