आत्मा एवं देह

गीता श्लोक –5.13

सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी

नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्

नौ द्वारों वाले शरीर में उसका आत्मा आनंद से रहता है जिसके सभीं कर्म मन द्वारा त्यागे जा चुके होते है /

One who has action without attachment whose mind does not think about actions being performed , his Soul dwells in his body of nine doors happily as a witness .

गीता श्लोक –14.5

सत्त्वं रजः तमः इति गुणाः प्रकृतिसम्भवा:

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनं अब्ययम्

देह में अब्यय को प्रकृति के तीन गुण रोक कर रखते हैं

Three natural modes – Goodness , Passion and dullness bind down Soul in the body .


गीता में प्रभुश्री कृष्णजोएक सांख्य – योगीके रूप में हैं अपने दो सूत्रों के माध्यम से अर्जुन को वह ज्ञान दे रहे हैं जो उसके सर के ऊपर – ऊपर से निकल जा रहा है , वह समझना तो चाहता है लेकिनउसका मन – बुद्धि तंत्र में तामस गुण की ऊर्जा भरी होनें के नाते समझ नहीं पा रहा , अर्जुन की यह सोच उसकेश्लोक – 6.33 , 6.34 से स्पष्ट होता है जहाँवह कह रहा है ------

हे मधुसूदन!जो समभाव योग आप मुझे बता रहे हैं वह मैं अपनें मन की चंचलता के कारण अहीं समझ पा रहा/मन की गति को रोकना वायु को रोकनें जैसा एक असंभव कार्य है अतः आप मुझे कोई ऐसा उपाय बाताएं जिससे मैं अपने मन को स्थिर कर सकूं?

==== ओम्========


Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

मन मित्र एवं शत्रु दोनों है