गीता अमृत - 49
परम सत्य को समझो
सन्दर्भ सूत्र - गीता ...8.6 , 15.8 , 14.5
गुरुवार रविन्द्र नाथ टैगोर कहते हैं ------
Butterfly counts not months but moments and has time enough
क्या इस सोच वाला ब्यक्ति कभी बूढा हो सकता है ? जी नहीं । मंदिरों में लम्बी - लम्बी कतारें किनकी हैं ?
कौन मौत की भय से मुक्त होना चाहता है ? कौन कभी मरना नही चाहता ?
[क] जो अपनें वर्तमान को सुखों में देखते हैं और जिनको इस से राहत मिलनें की कोई राह नहीं दिखती , वे न चाहते हुए भी मौत को आमंत्रित करते हैं ।
[ख] जो भोग को परम समझते हैं , जिनके पास भोग के सभी साधन उपलब्ध हैं वे मौत से संघर्ष करते हैं और अमरत्व की दवा खोजते हुए कहीं रास्ते में दम तोड़ देते हैं ।
अब जीवन को देखिये ........
जीवन में दो किनारे हैं और दोनों का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में मौत से सम्बंधित है ; जन्म मृत्यु को याद कराता है और जीवन का आखिरी छोर मृत्यु है ही । सब जानते हैं की मौत एक परम सत्य है लेकीन फिरभी मृत्यु के भय में अपना वर्तमान को खो रहे हैं - आखिर ऐसा क्यों है ?
गीता कहता है भागना शब्द भय से है और भय तामस गुण का तत्त्व है । परम श्री कृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन !
तुम युद्ध से भागना चाहता है और अपने इस कर्म को संन्यास की संज्ञा दे रहा है लेकीन तूं यह नहीं जानता की [ गीता - 2।52 ] .... भय - मोह बैराग्य - संन्यास से दूर रखता है ।
आज जो है वह मृत्यु से उत्पन्न हुआ है , आज जो है उसकी मृत्यु होनी ही है , फिर मौत से क्या डरना , लेकीन
इस बात से कौन राजी हो सकता है ? गीता में श्री कृष्ण के पांच सौ छप्पन श्लोक अर्जुन को यही बात तो बता रहे हैं की भय को त्यागो और युद्ध करो लेकीन अर्जुन इन बातों को सुनना कहाँ चाहते हैं ?
जबतक मनुष्य गुणों का गुलाम है ......
जबतक राग का सम्मोहन है .....
जबतक काम क्रोध लोभ मोह के बंधन हैं ......
जबतक तेरा - मेरा का भाव है .......
जबतक चाह है ......
जबतक सुख की उम्मीद है .....
तबतक -----
मौत का भय होगा ही ।
=====ॐ=======
सन्दर्भ सूत्र - गीता ...8.6 , 15.8 , 14.5
गुरुवार रविन्द्र नाथ टैगोर कहते हैं ------
Butterfly counts not months but moments and has time enough
क्या इस सोच वाला ब्यक्ति कभी बूढा हो सकता है ? जी नहीं । मंदिरों में लम्बी - लम्बी कतारें किनकी हैं ?
कौन मौत की भय से मुक्त होना चाहता है ? कौन कभी मरना नही चाहता ?
[क] जो अपनें वर्तमान को सुखों में देखते हैं और जिनको इस से राहत मिलनें की कोई राह नहीं दिखती , वे न चाहते हुए भी मौत को आमंत्रित करते हैं ।
[ख] जो भोग को परम समझते हैं , जिनके पास भोग के सभी साधन उपलब्ध हैं वे मौत से संघर्ष करते हैं और अमरत्व की दवा खोजते हुए कहीं रास्ते में दम तोड़ देते हैं ।
अब जीवन को देखिये ........
जीवन में दो किनारे हैं और दोनों का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में मौत से सम्बंधित है ; जन्म मृत्यु को याद कराता है और जीवन का आखिरी छोर मृत्यु है ही । सब जानते हैं की मौत एक परम सत्य है लेकीन फिरभी मृत्यु के भय में अपना वर्तमान को खो रहे हैं - आखिर ऐसा क्यों है ?
गीता कहता है भागना शब्द भय से है और भय तामस गुण का तत्त्व है । परम श्री कृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन !
तुम युद्ध से भागना चाहता है और अपने इस कर्म को संन्यास की संज्ञा दे रहा है लेकीन तूं यह नहीं जानता की [ गीता - 2।52 ] .... भय - मोह बैराग्य - संन्यास से दूर रखता है ।
आज जो है वह मृत्यु से उत्पन्न हुआ है , आज जो है उसकी मृत्यु होनी ही है , फिर मौत से क्या डरना , लेकीन
इस बात से कौन राजी हो सकता है ? गीता में श्री कृष्ण के पांच सौ छप्पन श्लोक अर्जुन को यही बात तो बता रहे हैं की भय को त्यागो और युद्ध करो लेकीन अर्जुन इन बातों को सुनना कहाँ चाहते हैं ?
जबतक मनुष्य गुणों का गुलाम है ......
जबतक राग का सम्मोहन है .....
जबतक काम क्रोध लोभ मोह के बंधन हैं ......
जबतक तेरा - मेरा का भाव है .......
जबतक चाह है ......
जबतक सुख की उम्मीद है .....
तबतक -----
मौत का भय होगा ही ।
=====ॐ=======
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