गीता अमृत - 43

गीता श्लोक - 15.9 - 15.11

गीता श्लोक - 15.9 कहता है ...... कान , आँख , नाक , जिह्वा एवं त्वचा के माध्यम से आत्मा का संभंध ध्वनि , रूप - रंग , गंध , स्वाद एवं सम्बेदना के जरिये है ।
गीता श्लोक - 15.10 कहता है ..... ग्यानी आत्मा को समझता है ।
गीता श्लोक - 15.11 कहता है .... निर्विकार अन्तः करण वाला आत्मा को अपनें ह्रदय में महसूश करता है ।
अब आप इन सूत्रों के लिए निम्न श्लोकों को देखें -------
गीता श्लोक - 13.24
ध्यान के मध्य आत्मा की अनुभूति ह्रदय में होती है ।
गीता श्लोक - 4.38
योग सिद्धि पर ज्ञान के माध्यम से आत्मा का बोध होता है ।
गीता श्लोक - 10.20, 13,17, 13,22, 15.7, 15.11, 15.15, 18.61
देह में आत्मा ही परमात्मा है जिसका स्थान ह्रदय है ।
गीता श्लोक - 14.5
देह में आत्मा को तीन गुण रोक कर रखते हैं ।
गीता श्लोक - 18.40
कोई ऐसा सत्व नहीं जो गुणों से अछूता हो ।
गीता श्लोक - 2.16
सत्य भावातीत है ।
गीता श्लोक - 7.12 - 7.13
गुण और गुणों के भाव , परमात्मा से हैं लेकीन परमात्मा गुनातीत - भावातीत है ।
आप अपनी बुद्धि और मन को इन श्लोकों पर केन्द्रित रखें , आज नहीं तो कल इसका फल आप को मिलेगा
और आप धन्य हो उठेंगे ।

======ॐ======

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