गीता अमृत - 39
सभी मार्ग एक जगह पहुँचते हैं
गीता श्लोक - 5.5 कहता है ......... योग सिद्धि पर सांख्य - योगी को जो मिलता है , अन्य योगी भी अपनें -अपनें योग सिद्धि पर उसको ही प्राप्त करते हैं ।
इस सम्बन्ध में हम गीता के निम्न सूत्रों को देखते है ------
[क] सूत्र - 4.38 ...... सूत्र कह रहा है -- योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है ।
[ख] सूत्र - 13.2 ...... सूत्र कहता है --- क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है ।
[ग] सूत्र - 13.7 - 13.11 ..... सूत्र कहते हैं -- आसक्ति अहंकार रहित सम भाव वाला ग्यानी होता है ।
[घ] सूत्र - 18.50 ....सूत्र कहता है -- नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान - योगकी परा निष्ठा है ।
[च] सूत्र - 18.49 .... सूत्र कहता है -- आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है ।
गीता स्पष्ट रूप से कहता है -- मार्ग का चुनाव तो तेरे हाँथ में है लेकीन सभी मार्ग तेरे को जहां पहुंचाते हैं उसका नाम एक है और वह है -------
## कर्म में कर्म - बंधनों को समझ कर कर्म में अकर्म का अनुभव प्राप्त करना ।
## भोग में भोग बंधनों को समझ कर भोग - राग से मुक्त होना ।
## अपनों के मोह - ममता को समझ कर सम भाव होना ।
## सुख - दुःख को समझ कर समत्व - योग में पहुँचना ।
## सब में आत्मा - परमात्मा के होनें को समझना ।
## सब को आत्मा - परमात्मा से आत्मा - परमात्मा में देखना , वह स्थिति है जिसको गीता सूत्र - 5.5 में कहना चाहता है -------
गीता आप के पास है , बुद्धि आप की अपनी है और ज्ञान प्राप्ति करना भी आप के हाँथ में है ।
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गीता श्लोक - 5.5 कहता है ......... योग सिद्धि पर सांख्य - योगी को जो मिलता है , अन्य योगी भी अपनें -अपनें योग सिद्धि पर उसको ही प्राप्त करते हैं ।
इस सम्बन्ध में हम गीता के निम्न सूत्रों को देखते है ------
[क] सूत्र - 4.38 ...... सूत्र कह रहा है -- योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है ।
[ख] सूत्र - 13.2 ...... सूत्र कहता है --- क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है ।
[ग] सूत्र - 13.7 - 13.11 ..... सूत्र कहते हैं -- आसक्ति अहंकार रहित सम भाव वाला ग्यानी होता है ।
[घ] सूत्र - 18.50 ....सूत्र कहता है -- नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान - योगकी परा निष्ठा है ।
[च] सूत्र - 18.49 .... सूत्र कहता है -- आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है ।
गीता स्पष्ट रूप से कहता है -- मार्ग का चुनाव तो तेरे हाँथ में है लेकीन सभी मार्ग तेरे को जहां पहुंचाते हैं उसका नाम एक है और वह है -------
## कर्म में कर्म - बंधनों को समझ कर कर्म में अकर्म का अनुभव प्राप्त करना ।
## भोग में भोग बंधनों को समझ कर भोग - राग से मुक्त होना ।
## अपनों के मोह - ममता को समझ कर सम भाव होना ।
## सुख - दुःख को समझ कर समत्व - योग में पहुँचना ।
## सब में आत्मा - परमात्मा के होनें को समझना ।
## सब को आत्मा - परमात्मा से आत्मा - परमात्मा में देखना , वह स्थिति है जिसको गीता सूत्र - 5.5 में कहना चाहता है -------
गीता आप के पास है , बुद्धि आप की अपनी है और ज्ञान प्राप्ति करना भी आप के हाँथ में है ।
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