गीता अमृत - 38

गीता श्लोक - 4.12
श्लोक कहता है -----
मनुष्य लोक में कर्म - फल प्राप्ति एवं कामना पूर्ति के लिए देव - पूजन उपयुक्त है ।
आइये ! हम गीत के इस सूत्र को अपनें ध्यान का माध्यम बनाते हैं ------
देखिये गीता सूत्र - 3.9 - 3,12, 4.24 - 4.33, 7.16, 9.25
तीन आदि देव - ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश , तीन माध्यम - ब्रह्म , देवता एवं मनुष्य और तीन गुण - सात्विक , राजस एवं तामस - यह तीन का रहस्य ही हिन्दू दर्शन का आधार है ।
गुणों के आधार पर तीन प्रकार के लोग हैं और उनका अपना - अपना यज्ञ , कर्म , पूजा एवं देव हैं ।
गीता कहता है [ गीता - 7.16 ] - अर्थार्थी , आर्त, जिज्ञासु एवं ग्यानी - चार प्रकार के लोग अपनें - अपनें देवताओं की पूजा करते हैं ।
अब हम देखते हैं गीता श्लोक - 9.25, 17.4, 17.11, 17.13, 4.24 - 4.33, 9.15, 3.9 - 3.15 तक को ------
पूजा करनें वालों में देव पूजक , पितृ - पूजक एवं भूत - प्रेत पूजक होते हैं और सब अपनें - अपनें कामनाओं की पूर्ति के लिए अपनी - अपनी यज्ञ एवं पूजा करते हैं । गीता सूत्र - 7.20 एवं 18.72 में प्रभु कहते हैं ---
कामना - मोह अज्ञान की जननी हैं और ऊपर यह भी कहते हैं की देव पूजन कामना पूर्ति का एक माध्यम है ।
गीता कहता है कामना से ही सही - यज्ञ करो लेकीन जब तुम कामना को समझोगे तब तेरी यज्ञ कामना रहित सीधे ब्रह्म मय होगी जो तेरे को परम आनंद में ले जायेगी ।
ब्रह्म की अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है [ गीता - 12.3 - 12.4 ] लेकीन मन - बुद्धि से परे की यात्रा परा - ध्यान यात्रा है जिसका प्रारम्भ अपरा से ही संभव है और मन - बुद्धि के स्तर पर जाना जा सकता है ।
गीता कामना पूर्ति के लिए देव पूजन की बात जो कह रहा है वह सहज कामनाओं के लिए है और सहज कामनाएं वे हैं जो प्रकृति की जरुरत के लिए हों । आप क्या समझते हैं , यदि कोई यह सोच कर पूजा या यज्ञ कर रहा है की उसका पड़ोसी मर जाए और देवता प्रसन्न हो कर उसकी कामना पूरी कर देंगे ? तो यह सोच सही नहीं है ।
देवता क्या इतनें नासमझ हैं की मनुष्य के मन में क्या है का पता न कर सकें ?
पूजन - यज्ञ करना उत्तम है लेकीन इनको कामना पूर्ति की गाडी नहीं बनाना चाहिए । कामना जब मन - बुद्धि में उठे तो यह देखना चाहिए की यदि हम इस कामना की पूर्ति , अहंकार की तृप्ति के लिए चाहते हैं तो यह उचित नहीं है । कामना की पूर्ति जब कामना उठानें को जानें तो वह कामना की पूर्ति साधना है और यदि एक कामना की पूर्ति अनेक कामनाओं को पैदा करे तो वह नरक में ले जानें वाली कामना है ।
कामना , क्रोध - लोभ राजस गुण के तत्त्व हैं और राजस गुण प्रभु - राह में एक मजबूत अवरोध है - गीता - 6.27 यही बात कहता है ।

====ॐ=====

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