गीता की यात्रा
भाग - 04
ज्ञान मोह की दवा है
--- गीता - 4.34 , 4.35
प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं :
जा तूं किसी सत गुरु की शरण में ,
वहाँ जो ज्ञान तेरे को मिलेगा वह तेरा मोह दूर करेगा ॥
जैसा मरीज , वैसा चिकित्सक :
गीता - अध्याय तीन के प्रारम्भ में अर्जुन का दूसरा प्रश्न है ----
हे प्रभु !
जब ज्ञान कर्म से उत्तम है फिर आप मुझको इस युद्ध - कर्म में क्यों उतारना चाहते हैं ?
इस प्रश्न के उत्तर में केवल कर्म की बात प्रभु करते हैं और तीसरी अध्याय के अंत में अगले
प्रश्न के उत्तर में काम
की चर्चा करते हैं ,
वहाँ ज्ञान के नाम पर प्रभु लगभग चुप सा रहते हैं लेकीन
गीता श्लोक - 4.34 से 4.42 तक में प्रभु कहते हैं -----
तेरा मोह दूर हो सकता है , लेकीन तेरे को किसी सत गुरु की तलाश करनी पड़ेगी ।
तेरा संदेह तेरे अज्ञान का फल है और अज्ञान ज्ञान से दूर होता है ।
ज्ञान योग सिद्धि पर मिलता है ॥
प्रभु ऐसा नहीं करते
जैसा हम -आप करते हैं ; बेटा / बेटी यदि दुखी हैं तो उनको तीन पहिये वाली
बनी बनायी सायकिल
ला देते हैं और बेटा / बेटी को क्षणिक सुख मिल जाता है और हम भी खुश हो लेते हैं ।
प्रभु अर्जुन के संदेह को कम नहीं करना
चाहते , उसे और उलझा रहे हैं क्योंकि अर्जुन
बुद्धि जीवी है , वह भक्त नहीं , उसमें अभी श्रद्धा नही बार पायी है ,
वह सीधी बात को कभी भी नहीं स्वीकर सकता अतः
अर्जुन जब भी
कर्म से दूर ज्ञान पर पहुंचता है , प्रभु उसे कर्म की ओर लाते हैं और .....
जब अर्जुन रुक कर
कुछ सोचनें लगता है कर्म के नजदीक आ कर तब उसे ज्ञान की बातें बतानें लगते हैं ॥
यह
सब क्या है ?
हम - आप यही सोच सकते हैं लेकीन ----
यह है .....
बुद्धि - योग ;
बुद्धि - योग में बुद्धि को बिश्राम स्थिति में न आनेदेना और हर पल उसके रुख को बदलते रहना , ऐसा
करनें से------
मन - बुद्धि का साथ टूट जाता है ......
साथ टूटनें से मन स्थिर हो जाता है ....
साथी को बैठे देख बुद्धि स्थिर हो जाती है , और ....
मन - बुद्धि का स्थिर होना ही ......
चेतना के फैलाव की मदद करता है ॥
चेतना जब फ़ैल कर मन - बुद्धि में भर जाती है , तब वह ब्यक्ति .....प्रभु में होता है ।
गीता सूत्र - 4.38 कहता है :
योग - सिद्धि ज्ञान - द्वार को खोलती है ॥
अर्जुन का गीता - योग सिद्ध हो गया , लेकीन ......
हमारा - आप का कब होगा ?
तब होगा ....
जब हम भी थक कर ....
संदेह रहित स्थिति में ....
पूर्ण रूप से .....
श्री कृष्ण को समर्पित हो जायेंगे ॥
==== ॐ ====
ज्ञान मोह की दवा है
--- गीता - 4.34 , 4.35
प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं :
जा तूं किसी सत गुरु की शरण में ,
वहाँ जो ज्ञान तेरे को मिलेगा वह तेरा मोह दूर करेगा ॥
जैसा मरीज , वैसा चिकित्सक :
गीता - अध्याय तीन के प्रारम्भ में अर्जुन का दूसरा प्रश्न है ----
हे प्रभु !
जब ज्ञान कर्म से उत्तम है फिर आप मुझको इस युद्ध - कर्म में क्यों उतारना चाहते हैं ?
इस प्रश्न के उत्तर में केवल कर्म की बात प्रभु करते हैं और तीसरी अध्याय के अंत में अगले
प्रश्न के उत्तर में काम
की चर्चा करते हैं ,
वहाँ ज्ञान के नाम पर प्रभु लगभग चुप सा रहते हैं लेकीन
गीता श्लोक - 4.34 से 4.42 तक में प्रभु कहते हैं -----
तेरा मोह दूर हो सकता है , लेकीन तेरे को किसी सत गुरु की तलाश करनी पड़ेगी ।
तेरा संदेह तेरे अज्ञान का फल है और अज्ञान ज्ञान से दूर होता है ।
ज्ञान योग सिद्धि पर मिलता है ॥
प्रभु ऐसा नहीं करते
जैसा हम -आप करते हैं ; बेटा / बेटी यदि दुखी हैं तो उनको तीन पहिये वाली
बनी बनायी सायकिल
ला देते हैं और बेटा / बेटी को क्षणिक सुख मिल जाता है और हम भी खुश हो लेते हैं ।
प्रभु अर्जुन के संदेह को कम नहीं करना
चाहते , उसे और उलझा रहे हैं क्योंकि अर्जुन
बुद्धि जीवी है , वह भक्त नहीं , उसमें अभी श्रद्धा नही बार पायी है ,
वह सीधी बात को कभी भी नहीं स्वीकर सकता अतः
अर्जुन जब भी
कर्म से दूर ज्ञान पर पहुंचता है , प्रभु उसे कर्म की ओर लाते हैं और .....
जब अर्जुन रुक कर
कुछ सोचनें लगता है कर्म के नजदीक आ कर तब उसे ज्ञान की बातें बतानें लगते हैं ॥
यह
सब क्या है ?
हम - आप यही सोच सकते हैं लेकीन ----
यह है .....
बुद्धि - योग ;
बुद्धि - योग में बुद्धि को बिश्राम स्थिति में न आनेदेना और हर पल उसके रुख को बदलते रहना , ऐसा
करनें से------
मन - बुद्धि का साथ टूट जाता है ......
साथ टूटनें से मन स्थिर हो जाता है ....
साथी को बैठे देख बुद्धि स्थिर हो जाती है , और ....
मन - बुद्धि का स्थिर होना ही ......
चेतना के फैलाव की मदद करता है ॥
चेतना जब फ़ैल कर मन - बुद्धि में भर जाती है , तब वह ब्यक्ति .....प्रभु में होता है ।
गीता सूत्र - 4.38 कहता है :
योग - सिद्धि ज्ञान - द्वार को खोलती है ॥
अर्जुन का गीता - योग सिद्ध हो गया , लेकीन ......
हमारा - आप का कब होगा ?
तब होगा ....
जब हम भी थक कर ....
संदेह रहित स्थिति में ....
पूर्ण रूप से .....
श्री कृष्ण को समर्पित हो जायेंगे ॥
==== ॐ ====
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