इनको भी जानो



मन - बुद्धि
बुद्धि - प्रज्ञा
प्रज्ञा - चेतना
चेतना - आत्मा को समझो ॥

आगे चल कर हमें स्थिर प्रज्ञ को समझना है और यह तब संभव है ......
जब हमें मन से आत्मा तक के तत्वों की अच्छी समझ हो ॥

मन , पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्म - इन्द्रियों का जोड़ है ; मन अपनी सुबिधा के लिए
इन्द्रियों का नेट - वर्क सम्पूर्ण देह में बिछा रखा है ॥

मन के ऊपर है - बुद्धि जो एक तरफ मन से और ऊपर की ओर प्रज्ञा से जुड़ी होती है ।

मन और बुद्धि तक गुणों का प्रभाव होता है और
मनुष्य प्रभु में रूचि न लेकर भोग में बसना चाहता है ।
गीता श्लोक - 6.27 में प्रभु कहते हैं ------
राजस गुण के सात मेरी ओर रुख करना असंभव है ॥

बुद्धि के ऊपर होती है प्रज्ञा , प्रज्ञा एक अति सूक्ष्म झिल्ली है जो बुद्धि और चेतना को जोडती है ।
प्रज्ञा को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं .......
जब बुद्धि पर गुण - तत्वों का असर नहीं होता उस समय वह बुद्धि प्रज्ञा हो जाती है ।
प्रज्ञा वह माध्यम है जो जीवन ऊर्जा जो उसे आत्मा के माध्यम से मिलती है ,
उसे वह बुद्धि के माध्यम से
मन तक पहुंचाती है
और ......
आत्मा प्रभु को अलग - अलग नहीं देखा जा सकता ।
गीता श्लोक - 10.20 में प्रभु कहते हैं -----
सबके ह्रदय में आत्मा के रूप में , मैं रहता हूँ और इस प्रकार सब का .....
आदि ....
मध्य .....
अंत .....
मैं हूँ ॥
आज इतना ही

=== प्रभु श्री कृष्ण को अपने ह्रदय में तलाशें =====

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