गीता श्लोक - 18.2
काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदु : ।
सर्व कर्म फल त्यागं प्राहु : त्यागं विचक्षणा : ॥
कर्म में कामना का न होना , योगी की पहचान है .....
और ----
कर्म में फल की सोच की अनुपस्थिति को .....
कर्म फल का त्याग कहते हैं ॥
action without desire makes one yogin ........
and ----
when there is no expectation of result .....
it is called .....
renunciation of ----
action - fruitation .
गीत संन्यासी की यदि आप को तलाश हो तो आप गीता के एक - एक सूत्र की
गंभीरता को अपनें जेहन में बैठाते जाइए
और .......
एक दिन आप को गीता - योगी की तलाश नहीं करनी पड़ेगी ,
क्योंकि ......
आप स्वयं
गीता - योगी हो गए होंगे ॥
==== ॐ =====
सर्व कर्म फल त्यागं प्राहु : त्यागं विचक्षणा : ॥
कर्म में कामना का न होना , योगी की पहचान है .....
और ----
कर्म में फल की सोच की अनुपस्थिति को .....
कर्म फल का त्याग कहते हैं ॥
action without desire makes one yogin ........
and ----
when there is no expectation of result .....
it is called .....
renunciation of ----
action - fruitation .
गीत संन्यासी की यदि आप को तलाश हो तो आप गीता के एक - एक सूत्र की
गंभीरता को अपनें जेहन में बैठाते जाइए
और .......
एक दिन आप को गीता - योगी की तलाश नहीं करनी पड़ेगी ,
क्योंकि ......
आप स्वयं
गीता - योगी हो गए होंगे ॥
==== ॐ =====
Comments