गीता श्लोक - 2.46



यावान अर्थ : उद - पानें
सर्वत : संप्लुत - उदके ।
तावान सर्वेषु वेदेषु
ब्राह्मणस्य विजानत : ॥

प्रभु अर्जुन को बता रहे हैं :------
अर्जुन गीता - योगी वह है जिसका सम्बन्ध वेदों से नाममात्र का रह
जाता है ;
इस बात हो कुछ
इस प्रकार से समझना उचित होगा ------

जैसे यदि किसी को विशाल जलाशय मिल जाए तो
उसका सम्बन्ध एक छोटे से कूएं से कैसा
होगा , ठीक इसी तरह .....
गीता - योगी और वेदों का सम्बन्ध होता है ॥

[ what would be the importance of
a small pond in a place which is fully flooded
with clean water , so is the relationship of .....
a gita - yogin with vedas । ]
vedas are in favour of threefold natural modes [ gunas ]
and .....
it says :-------
beyond mind and intelligence ,
there is an absolute space where .....
one passes throgh the .....
absolute realty [ truth ] of the cosmos .
modes are nothing but the forces who pull in bhoga
and do not allow
to enter in the .....
beautitude of the ....
ultimate truth .

आज इतना ही .....

==== ॐ ======

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

मन मित्र एवं शत्रु दोनों है