इसे समझो


गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहे हैं :

गुण कर्म करता हैं , करता भाव अहंकार की छाया है ॥
गुण स्वभाव का निर्माण करते हैं ,
स्वभाव में कर्म करनें की उर्जा होती है ॥

गीता यह भी कहता है :
कर्म में कर्म तत्वों की पहचान , मनुष्य को भोगी से योगी बना देती है ॥
कर्म - तत्वों की जब पकड समाप्त हो जाती है और .....
कर्म ----
बिना कामना .....
बिना क्रोध .....
बिना लोभ .....
बिना मोह .....
बिना भय .....
बिना आलस्य ,
और बिना अहंकार के प्रभाव में पहले की भाँती होते रहते हैं ,
तब .....
वह कर्म कर्म - योगी के रूप में होता है और .....
उसके पीठ पीछे भोग और आँखों में प्रभु का निवास होता है ॥

गीता के एक -एक सूत्रों की ऊर्जा में .....
आत्मा के
रूप में प्रभु को देखो ॥

आज आप को प्रभु का प्रसाद मिल गया है ....

कल की बात कौन जानता है ॥

==== ॐ =====

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