रहस्यों का रहस्य
न्यूटन का विज्ञानं 200 वर्षों तक विज्ञानं जगत पर छाया रहा लेकिन 20 वी शताब्दी के प्रारम्भ में
अपनी पकड़ क्यों खोनें लगा ?
सन 1918-1933 के मध्य ऐसा क्या हुआ की विज्ञान की दिशा बदल गई ?
अब आप इस सम्बन्ध में पहले कुछ वैज्ञानिकों के विचारों को देखिये जो नोबल पुरष्कार प्राप्त किया है ---
A- Max Plank , noble prize----1918
He says......
science can not solve the ultimate mistery of nature------every advance in knowledge brings us face to face to face the mystery of our own being.
B- Albert Einstein, noble prize-----1921
He says.........
When I read Bhagvad Gita and reflect upon how God has created this unverse, every thing else seems superflous.
C- Werner Karl Heisenberg, noble prize ----1932
He says............
In all the world there is no kind of frame work within which we find Consciousness in the plural. This is something we construct because of the temporal plurality of indivisuals.
But it is a false construction ......The only solution to this conflict, in so far as any is available to us at all lies in the ancient wisdom of Upanishad.
D- Erwin Schrodinger, noble prize ---1933
He says.........
Each indivisual Consciousness is only a manifestation of a unitary Consciousness.
गैलिलिओ सत्रहवी शताब्दी में जब यह कहा ---पृथ्वी गोल है और सूर्य के चारों तरफ़ चक्कर लगाती है तब उस समय के धर्माचार्यों नें उनको नजर बंद करके बोला ---तूं अपनी जुबान बंद रख नहीं तो तेरे को जला दिया जाएगा और बीश्वी शताब्दी के वैज्ञानिक उपनिषद एवं गीता में अपनें को सुरक्षित पा रहे हैं ।
पहले विज्ञान एवं धर्म बिपरीत दिशा ममें चलते दीखते थे लिकिन अब दोनों की दिशा एक दिख रही है जो मनुष्य सभ्यता के लिए एक उत्तम है ।
चेतना ध्यान का केन्द्र है और बुद्धि विज्ञानं का लेकिन अब ऐसा दिख रहा है की वैज्ञानिकों की यात्रा
बुद्धि से चेतना कीहै जो ज्ञान मार्ग है और मन से बुद्धि की यात्रा का नाम कर्म-योग है । अब वैज्ञानिकों
के रुख को देख कर यह कहा जा सकता है की वे ज्ञान मार्गी हैं जिसमें उनको कभी-कभी सत की झलक
मिलती रहती है और उस काल में वे जो कुछ भी बोलते हैं वह कल का विज्ञानं बन जाता है ---आप इस
सम्बन्ध में आइन्स्टाइन के उन तमाम बातों को देखिये जिनको वे संन 1917 से पूर्व में बोले थे ।
चेतना में पहुंचे ब्यक्ति को सत दिखता है जहाँ भ्रम का एक कण भी नहीं होता लेकिन बुद्धि से चेतना की यात्रा में भ्रम की छाया दिखती है ।
====ॐ=========
अपनी पकड़ क्यों खोनें लगा ?
सन 1918-1933 के मध्य ऐसा क्या हुआ की विज्ञान की दिशा बदल गई ?
अब आप इस सम्बन्ध में पहले कुछ वैज्ञानिकों के विचारों को देखिये जो नोबल पुरष्कार प्राप्त किया है ---
A- Max Plank , noble prize----1918
He says......
science can not solve the ultimate mistery of nature------every advance in knowledge brings us face to face to face the mystery of our own being.
B- Albert Einstein, noble prize-----1921
He says.........
When I read Bhagvad Gita and reflect upon how God has created this unverse, every thing else seems superflous.
C- Werner Karl Heisenberg, noble prize ----1932
He says............
In all the world there is no kind of frame work within which we find Consciousness in the plural. This is something we construct because of the temporal plurality of indivisuals.
But it is a false construction ......The only solution to this conflict, in so far as any is available to us at all lies in the ancient wisdom of Upanishad.
D- Erwin Schrodinger, noble prize ---1933
He says.........
Each indivisual Consciousness is only a manifestation of a unitary Consciousness.
गैलिलिओ सत्रहवी शताब्दी में जब यह कहा ---पृथ्वी गोल है और सूर्य के चारों तरफ़ चक्कर लगाती है तब उस समय के धर्माचार्यों नें उनको नजर बंद करके बोला ---तूं अपनी जुबान बंद रख नहीं तो तेरे को जला दिया जाएगा और बीश्वी शताब्दी के वैज्ञानिक उपनिषद एवं गीता में अपनें को सुरक्षित पा रहे हैं ।
पहले विज्ञान एवं धर्म बिपरीत दिशा ममें चलते दीखते थे लिकिन अब दोनों की दिशा एक दिख रही है जो मनुष्य सभ्यता के लिए एक उत्तम है ।
चेतना ध्यान का केन्द्र है और बुद्धि विज्ञानं का लेकिन अब ऐसा दिख रहा है की वैज्ञानिकों की यात्रा
बुद्धि से चेतना कीहै जो ज्ञान मार्ग है और मन से बुद्धि की यात्रा का नाम कर्म-योग है । अब वैज्ञानिकों
के रुख को देख कर यह कहा जा सकता है की वे ज्ञान मार्गी हैं जिसमें उनको कभी-कभी सत की झलक
मिलती रहती है और उस काल में वे जो कुछ भी बोलते हैं वह कल का विज्ञानं बन जाता है ---आप इस
सम्बन्ध में आइन्स्टाइन के उन तमाम बातों को देखिये जिनको वे संन 1917 से पूर्व में बोले थे ।
चेतना में पहुंचे ब्यक्ति को सत दिखता है जहाँ भ्रम का एक कण भी नहीं होता लेकिन बुद्धि से चेतना की यात्रा में भ्रम की छाया दिखती है ।
====ॐ=========
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