अर्जुन का प्रश्न - 12

अर्जुन कहते हैं [ गीता - श्लोक 11.45 , 11.46 ] ....हे प्रभु ! मैं आप का उग्र रूप देख कर भयभीत हो गया हूँ , आप कृपया मुझे अपना विष्णु रूप दिखाएँ ।
प्रश्न के उत्तर में हमें गीता-श्लोक 11.47 से 11.55 तक को देखना है क्योंकि अर्जुन का अगला प्रश्न गीता- श्लोक
12.1 से है । अर्जुन को तामस गुण से सात्विक गुण पर केंद्रित करनें के लिए परम श्री कृष्ण अभी तक
क्या- क्या नहीं किए ; अपनें को परमात्मा बताते हुए लगभग सौ से भी अधिक साकार एवं निराकार रूपों
को दिखा चुके हैं लेकिन अर्जुन का तामस गुण कमजोर पड़नें के बजाय और मजबूत हो रहा है । अर्जुन को
अपना ऐश्वर्य रूपों को दिखानें के लिए परम श्री कृष्ण दिव्य नेत्र [गीता श्लोक 11.8 ] भी दिए लेकिन अर्जुन अब भी तृप्त नहीं दिख रहे ।
अर्जुन के लिए यह युद्ध एक ब्यापार है [गीता-श्लोक 1.22 ] और परम के लिए [गीता-श्लोक 2.31, 2.33 ] यह धर्म युद्ध है गीता की रचना होनें का यही बुनियादी कारण है । यदि प्रारंभ में श्री कृष्ण अर्जुन को यह बात स्पष्ट कर दिए होते की यह युद्ध कैसे धर्म युद्ध है ? तो शायद बात इतनी लम्बी न चलती । अर्जुन गीता श्लोक 11.17 में श्री कृष्ण को मुकुट युक्त, गदा युक्त तथा चक्र युक्त एवं परम प्रकाश मय देख चुके हैं लेकिन पुनः इस रूप को क्यों देखना चाहते हैं , यह बात आप को समझनीं है । ब्यापार राजस एवं तामस गुणों की ऊर्जा से आगे चलता है और धर्म को सात्विक गुण से ऊर्जा मिलती है । श्री कृष्ण त्रिकाल दर्शी हैं वे जानते हैं की इस युद्ध को टाला नहीं जा सकता , युद्ध तो होना ही है तो क्यों न इसे ध्यान विधि की तरह प्रयोग करके
अर्जुन को राजस- तामस गुणों के सम्मोहन से परे करके सात्विक गुण में ला कर वह आयाम दिखा दिया
जाए जिस को देखनें के लिए मनुष्य योनी मिलती है । श्री कृष्ण इस युद्ध को ध्यान का माध्यम मानते हैं
और अर्जुन इस बात को समझ नहीं पा रहे । गीता अध्याय 11 का समापन हो रहा है गीता के 700 श्लोकों
में से 469 श्लोक पूरे भी हो चुके हैं लेकिन अर्जुन की भाव दशा में कोई परिवर्तन देखनें को नहीं मिलता। अभी तक गीता में आत्मा-परमात्मा , कर्म, कर्म-योग , कर्म- संन्यास , बैराग्य तथा ज्ञान से सम्बंधित
सभी बातों को बताया जा चुका है लेकिन अर्जुन के लिए अभी तक ये बातें असर दार साबित नहीं हो पायी हैं । परम श्री कृष्ण अर्जुन के आग्रह पर अपना विष्णु रूप दिखाते हैं [ गीता श्लोक 11.50 ] और
अर्जुन कहते हैं ----अब मैं स्थिर चित्त हो गया हूँ लेकिन इनकी यह बात भी ऊपर-ऊपर से निकल रही है क्योंकि अर्जुन इसके बाद भी चार और प्रश्न करते हैं । स्थिर चित्त वाला कभीं भी प्रश्न नहीं करता , उसकी बुद्धि में प्रश्न पैदा करनें वाली ऊर्जा नहीं होती ।
=====ॐ========

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