गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध

यहाँ हम एक जटिल बिषय पर गीता में झाकनें का प्रयत्न कर रहे हैं जिस के लिए निम्न श्लोकों को गहराई
से देखना है , तो आइये पहले श्लोकों से परिचय करते हैं --------
2.37- 2.38, 2.42- 2.46, 3.9- 3.15, 4.24- 4.33, 6.40- 6.45, 9.15, 9.20- 9.22, 17.11- 17.15
यहाँ गीता के अध्याय 2, 3, 4, 6, 9, तथा 17 के 38 श्लोकों में जो मिलता है वह कुछ इस प्रकार है -------
मनुष्य एक मात्र ऐसा जीव है जो प्रकृत से प्रकृत में है तो जरुर लेकिन अपनें को प्रकृत से अलग समझता
है और यही कारण उसे सर्बोत्तम होनें पर भी सब से अधिक भयभीत रखता है ।
देखिये गीता-सूत्र 2.37- 2.38
श्री कृष्ण कहते हैं .....अर्जुन यदि तूं इस युद्ध में मारा जाता है तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति मिलेगी और यदि जीतता है तो राज्य का सुख मिलेगा , दोनों स्थितिओं में तेरा भला है अतः तूं युद्ध के लिए खडा हो जा । भोग का प्रलोभन दे कर युद्ध के लिए कह रहे हैं और आगे कहते हैं --यदि तूं सम- भाव में युद्ध करता है तो तेरे को कोई पाप भी नहीं लगेगा ।
अब आप श्री कृष्ण की आगे की बातों को देखिये ------
कर्म का होना मनुष्य के बस में नहीं है , मनुष्य गुणों के प्रभाव में कर्म करता है , ऐसे कर्म भोग कर्म हैं और
सभी ऐसे गुनप्रभावित कर्मों में दोष होता है [गीता-सूत्र 2.45, 3.5, 3.27, 3.33, 18.48 ] लेकिन सहज
कर्मों को करना चाहिए । सहज कर्म वह हैं जो प्रकृति की मांग को पूरा करते हैं ।
श्वास लेने से स्वप्न देखनें तक की सभी गतिबिधियाँ जिनका केन्द्र प्रभू होता है , यज्ञ कहलाते हैं यहाँ आप
देख सकते हैं गीता के सूत्र ---3.9-3.15, 4.24- 4.33, 9.15, 17.11- 17.15 तक को । प्रकृति , पुरूष ,
देवता एवं मानव इन चार के माध्यम से संसार का रहस्य बना हुआ है । हमें जो कुछ भी प्राप्त है वह सब
देवताओं से है , देवता मानव एवं प्रभू के मध्य एक माध्यम हैं ।
गीता कहता है ----ऐसे योगी जो बैरागी होनें के पहले योग खंडित होनें पर अपना शरीर छोड़ जाते हैं , वे
कुछ समय स्वर्ग में गुजारते हैं और फ़िर जन्म ले कर अपनी योग यात्रा करते हैं लेकिन कुछ योगी
बैरागी बननें के बाद योग से गिर जाते हैं और इस स्थिति में उनका शरीर छूट जाता है तो ऐसे योगी स्वर्ग न
जा कर किसी उत्तम योगी- कुल में जन्म लेते हैं और जन्म से बैरागी होते हैं पर ऐसे योगी दुर्लभ हैं ।
गीता में स्वर्ग एक भोग का स्थान है जहाँ देवताओं के ऐश्वर्य भोग उपलब्ध हैं ।
गीता कहता है ----गीता- योगी का सम्बन्ध वेदों से नाम मात्र का रह जाता है क्योंकि वेदों में स्वर्ग
प्राप्ति को परम बताया गया है और भोग प्राप्ति के मार्गों को भी बताया गया है ।
यज्ञ , स्वर्ग , मुक्ति तथा मानव के सम्बन्ध को समझना ही गीता में उतरना है ।
जो कुछ भी हम करते हैं उनका आधार मन-बुद्धि हैं और प्रभू इनके परे की अनुभूति है ।
====ॐ======

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